डेस्क:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को भारतीय न्याय संहिता को लेकर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि गहन विचार विमर्श और मंथन के बाद न्याय संहिता अपने वर्तमान स्वरूप में सामने आई है। इसके लागू होने के बाद जेलों से ऐसे हजारों विचारधीन कैदियों को छोड़ा गया है, जो पुराने कानूनों की वजह से जेलों में बंद थे। प्रधानमंत्री चंडीगढ़ में विशेष रूप से अयोजित कार्यक्रम तीन परिवर्तनकारी नए आपराधिक कानूनों (भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम) के सफल कार्यान्वयन को राष्ट्र को समर्पित कर रहे थे। ये तीनों कानून पहली जुलाई से लागू कर दिए गए हैं।
पीएम मोदी ने कहा कि नए कानून दंड के लिए नहीं, बल्कि न्याय के उद्देश्य से बनाए गए हैं। भारतीय न्याय संहिता इसके लागू होने के बाद जेलों से ऐसे हजारों विचारधीन कैदियों को छोड़ा गया है, जो पुराने कानूनों की वजह से जेलों में बंद थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि 7 दशकों में न्याय व्यवस्था की चुनौतियों की समीक्षा, व्यापक विचार-विमर्श के बाद भारतीय न्याय संहिता तैयार की गई है। हर कानून को व्यावहारिक दृष्टिकोण से परखा गया है। उन्होंने इन कानूनों के लिए उच्चतम न्यायालय और देश भर के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों का आभार भी प्रकट किया। मोदी ने तीनों कानूनों को राष्ट्र को समर्पित करते हुए कहा, ‘देश के कानून उसके नागरिकों के लिए है, इसलिए कानूनी प्रक्रिया भी नागरिक-केंद्रित होनी चाहिए। हालांकि, पुरानी व्यवस्था में प्रक्रिया ही सजा बन गई थी।’
प्रधानमंत्री ने कहा कि एक स्वस्थ समाज में कानून सुरक्षा का साधन होना चाहिए। आईपीसी केवल नियंत्रण के साधन के रूप में भय पर निर्भर थी और यह अच्छा है कि अब समय बदल गया है। मोदी ने कहा कि पुराने कानूनों में दिव्यांगों के लिए ऐसे-ऐसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया गया था, जिसे कोई भी सभ्य समाज स्वीकार नहीं कर सकता। हमने ही पहले इस वर्ग को दिव्यांग कहना शुरू किया, उन्हें कमजोर महसूस कराने वाले शब्दों से छुटकारा दिलाया। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने 2016 में हमने दिव्यांगजनों के अधिकार का कानून लागू करवाया। उन्होंने कहा कि देश औपनिवेशक युग की सोच से बाहर निकले और अपने सामर्थ्य का प्रयोग राष्ट्र निर्माण में लगाए, इसके लिए राष्ट्रीय चिंतन आवश्यक था।
पीएम मोदी ने कहा, ‘मैंने 15 अगस्त को लाल किले से गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का संकल्प देश के सामने रखा था। अब भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के जरिए देश ने उस दिशा में एक और मजबूत कदम उठाया है।’ हमारी न्याय संहिता ‘जनता की जनता, जनता द्वारा और जनता के लिए’ के उस भावना को सशक्त कर रही है, जो लोकतंत्र का आधार होती है। भारतीय न्याय संहिता का मूल मंत्र है- नागरिक सबसे पहले। ये कानून नागरिक अधिकारों के संरक्षणकर्ता बन रहे हैं। न्याय में सरलता का आधार बन रहे हैं। पहले प्राथमिकी लिखवाना कितना मुश्किल होता था, लेकिन अब जीरो एफआईआर को भी कानूनी रूप दे दिया गया है। सरकार का मानना है कि इन नए आपराधिक कानूनों का उद्देश्य भारत की न्याय व्यवस्था को अधिक पारदर्शी, कुशल और समकालीन समाज की आवश्यकताओं के अनुकूल बनाना है।