भाईंदर,गजेंद्र सामोता:आचार्य श्री महाश्रमण जी की विदुषी शासन श्री साध्वी विद्यावती द्वितीया एवम सह साध्वीव्रंध प्रियं वदाजी,, प्रेरणा श्रीजी, रिद्धि यशाजी, मृदुयशाजी के सानिध्य में तेरापंथ भवन, टेंबो रोड, भाईंदर में संवत्सरी का महान पावन पर्व मनाया गया । संवत्सरी पर्व की शुरुवात नमस्कार महामंत्र के जाप द्वारा हुई तत्पश्चात साध्वी श्रीजी ने अनुप्रेक्षा प्रयोग का ध्यान करवाया गया । तीर्थंकर महावीर – माता त्रिशाला रो दुलारो का संगान किया ।आज के पर्युषण पर्व पर हर श्रावक को हो सके तो अष्ट प्रहरी, छः प्रहरी, या चार प्रहरी पोषध तो करना चाहिए । कल मैत्री पर्व है अतः आज राग, द्वेष, कलह का बही खाता बंद कर कल क्षमापना दिवस के रूप में नए दिवस की शुरुवात करनी चाहिए । मौत का एक नाम भी समवर्ती है । संवत्सरी पर्व त्याग , तपस्या की ओर प्रेरित करता है । समूचे जैन समाज में तीर्थकारो और आचार्यों का एक अलग ही प्रभुत्व रहा है । युवक परिषद द्वारा – संवत्सरी का दिन आज वर्ष भर में पावन पर्व के रूप में मनाया है की प्रस्तुति दी । वही कन्या मंडल की बच्चियों द्वारा अपनी संगीतमय प्रस्तुति में हम सभी को मिलजुल कर साथ रहना चाहिए की शानदार प्रस्तुति दी । शासन श्री साध्वी विद्यावती जी – आयो जैन जगत रो पर्व – संवत्सरी रे द्वारा शुभारंभ करते हुए नमस्कार महामंत्र का जाप भी करवाया । भगवान महावीर की उत्तम वाणी – भीतर के सौंदर्य में देखो ,दर्पण नही दूरबीन बनो मार्मिक बात बताई । आज के पावन पर्व पर खाना पीना छोड़कर जप, तप एवं तपस्या करने के साथ ध्यान – स्वाध्याय करना चाहिए की भी प्रेरणा दी । जैन संवत्सरी पर्व को महान पर्व बताते हुए कहा श्रावक के भी तीन प्रकार होते है । महावीर स्वामी के 26 भव को पूरा करने के बाद आज 27 वें भव का वांचन किया जिसमे 14 स्वप्न त्रिशला माता के गर्भ में आए और गर्भ काल के दौरान महावीर को 3 ज्ञान का अनुभव भी गर्भ में हो गया था । गर्भ अवस्था में माता की पीड़ा को देख महावीर हिलना डुलना बंद किया तो त्रिशला को दर सताने लगा की महावीर कही गर्भ में नही चला गया तब महावीर ने अंतरमन में विचार कर गर्भ में हिलना डुलना शुरू किया तब माता त्रिशला को सकून मिला की महावीर गर्भ अवस्था में बिलकुल सही है । चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को भगवान महावीर को जन्म दिया 🪔 । महावीर कुछ समय पश्चात दीक्षा के लिए प्रेरित हुए और दीक्षा के भाव होते ही मध्य भाग के बाल का लोचन शुरू कर दिया । दीक्षा के पश्चात भगवान महावीर को काफी तकलीफ और पीड़ाओं को झेलना पड़ा । जब वो ध्यान मुद्रा में थे तब वहां के गांव के लोगो ने उनको मारा और बहुत तकलीफ दी तब इन्द्र देव द्वारा गांव के लोगों को समझाया यह कोई साधारण मानव नही है देव पुरुष है तब गांव के लोगो ने तकलीफ देना बंद कर दिया । चंडकोशिक शर्प भी भगवान महावीर को डंक मारा तो उस डंक की जगह दूध निकलने लगा , चंडकोशीक भी गबरा गया जहर की जगह दूध कैसे । उसे आभाष हुआ यह कोई साधारण मानव नही भगवान का रूप लगता है । भगवान इंद्र ने भी महावीर की इंद्रलोक में काफी प्रसंशा की । संवत्सरी के पावन पर्व का संचालन साध्वी श्री प्रियं वदाजी ने बहुत ही खूब सूरत रूप में ज्ञान और आध्यात्म की गंगा का बहार कर श्रावको में ज्ञान का प्रवाह किया । साध्वी श्री जी ने चंदन बाला की कहानी का वाचन करते हुए वसुमति ने राजा से कहा मेने रात में भयानक सपना देखा की चंपा नगरी में तबाही और संकट आने वाला है । सतानिक राजा ने चंपानगरी पर आक्रमण किया । दधी वाहन द्वारा अहिंसा के माध्यम का सहारा लेने से राजा ने चंपा नगरी पर आक्रमण करने पर मना कर दिया । तब सतानिक राजा ने हिंसा न करना मंजूर कर वहा से निकलना ही उचित समझा । देव, धर्म, गुरु का सहारा ही पर्युषण पर का सार है एवम आत्मालोकन का पर्व ही संवतसरी है ।