क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद रूस को जी-8 फोरम से बाहर होना पड़ा था। 2017 में रूस के पूरी तरह इस फोरम से अलग होने के बाद ये फोरम जी-7 में तब्दील हो गया था। यूक्रेन पर हमले के बाद एक बार फिर ऐसे हालात बन रहे हैं। अमेरिका, रूस को जी-20 फोरम से हटाने की पूरी कोशिश कर रहा है।
इस साल अक्तूबर-नवंबर के बीच जी-20 देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक होनी है। इस बैठक से पहले अमेरिका और पश्चिमी देश इस फोरम से रूस को अलग करने की कोशिश में लगे हैं। लेकिन क्या रूस को जी-20 फोरम से अलग करना इतना आसान है ? क्या जी-20 भी जी-19 बन पाएगा? ऐसा हो पाना थोड़ा मुश्किल नजर आ रहा है।
रूस को मिलेगा तीन देशों का समर्थन
विदेश नीति के जानकारों की मानें, तो यूक्रेन पर हमले के बाद वैसी स्थिति अब भी बन रही है, जैसी जी-8 देशों से रूस को निलंबित किए जाने के समय बनी थी। लेकिन दोनों फोरम की संरचना अलग-अलग है। जी-8 के बाकी सात देशों में कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, जापान, ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय यूनियन शामिल थे।
इस फोरम में भारत-चीन या दक्षिण अफ्रीका जैसे देश शामिल नहीं थे। ये जी-20 फोरम में ये तीनों ही आर्थिक शक्तियां शामिल हैं। दरअसल, जी-20 देश दुनिया की 80 फीसदी अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करते हैं और करीब-करीब यह पूरी दुनिया ही है। जी-20 देशों में स्पष्ट है कि भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका कभी भी रूस के निलंबन का समर्थन नहीं करेंगे।
रूस को निमंत्रण भेजने पर अड़ा इंडोनेशिया
अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए सबसे बड़ी समस्या ये है कि जी-20 फोरम का मौजूदा अध्यक्ष इंडोनेशिया जी-20 देशों के प्रमुखों की बैठक के लिए रूस को आमंत्रित करने पर अड़ा गया है। जबकि अमेरिका-यूरोप चाहते हैं कि इंडोनेशिया रूस को न आमंत्रित करे। लेकिन वो अमेरिका की बात नहीं मान रहा है। इंडोनेशिया ने साफ तौर पर कह दिया है कि वो पुतिन को निमंत्रण भेजेगा।
हालांकि संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन से रूसी सैनिकों को हटाने के प्रस्ताव का इंडोनेशिया ने समर्थन किया था, लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं था कि वह अमेरिका या यूरोप के साथ खड़ा है। दरअसल, भारत की तरह इंडोनेशिया की विदेश नीति भी स्वतंत्र रही है। वह कभी किसी महाशक्ति का पिछलग्गू नहीं रहा है। इंडोनेशिया के रूख से साफ है कि जी-20 की बैठक में पुतिन शिरकत करेंगे।
2023 में भारत होगा जी-20 का अध्यक्ष
2023 में जी-20 फोरम की अध्यक्षता भारत के पास आ जाएगी। अध्यक्षता भारत के पास आ जाने के बाद पश्चिमी देशों के लिए रूस को जी-20 फोरम से निलंबित किए जाने की राह और मुश्किल हो जाएगी। भारत अपनी अध्यक्षता में कभी भी रूस के निलंबन की नौबत नहीं आने देगा। मतलब साफ है कि अमेरिका-यूरोप को रूस को इस फोरम से निलंबित करने के लिए 2024 तक इंतजार करना होगा।
जानकारों का कहना है कि जिस प्रकार इंडोनेशिया ने अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का परिचय दिया है, करीब-करीब वही रुख भारत का भी रहेगा क्योंकि भारत स्वतंत्र विदेश नीति की राह चलता है।
हालांकि जानकारों का मानना है कि अगर रूस-यूक्रेन युद्ध लंबा खिंचता है तो जी-20 फोरम में पुतिन का आना इस समस्या के समाधान के लिए जारी गतिरोध को तोड़ने में भी कोई रास्ता खोल सकता है, क्योंकि साइडलाइन वार्ताओं में कई बार समाधान के रास्ते निकल आते हैं। लेकिन देखना यह भी होगा कि पुतिन के जाने पर अमेरिका और यूरोपीय देश सम्मेलन का बहिष्कार तो नहीं करेंगे, जिसकी आशंका ज्यादा है।
जानकारों का मानना है कि यदि अमेरिका, रूस को जी-20 देशों के फोरम से निकालने में कामयाब भी रहता है तो भी इसका रूस को प्रत्यक्ष तौर पर कोई नुकसान नहीं है क्योंकि आर्थिक प्रतिबंधों के कारण जो क्षति होनी थी वह हो रही है।