डेस्क:सॉरी पापा, मुझे माफ कर देना, मैं अब बहुत थक गई हूं। प्लीज किसी के ऊपर इसका दोष न दिया जाए, आई मिस यू मम्मी-पापा। दर्द भरी यह लाइनें सुसाइड नोट में लिखकर इंटर की छात्रा ने फांसी लगाकर जान दे दी। परिजनों के मुताबिक इंटर का पेपर खराब होने से बेटी ने फेल होने के डर में यह कदम उठाया। मौत के बाद घर में कोहराम मच गया। परिजनों ने शव का पोस्टमार्टम कराने से इनकार कर दिया।
कानपुर के बर्रा-2 निवासी विनोद पाल प्राइवेट कर्मचारी हैं। परिवार में पत्नी रत्ना, बेटा अनिकेत के अलावा 17 वर्षीय बेटी आंचल पाल इंटर की छात्रा थीं। परिजनों ने बताया कि बेटी आंचल की 12वीं की परीक्षा चल रही है। पिछले दिनों उसका अकांउट का पेपर था। परीक्षा देकर घर लौटी बेटी तनाव में थी। पूछने पर बताया कि पेपर में बाहर से प्रश्न पूछे गए हैं। इसलिए पेपर खराब हुआ है। ऐसे में उसे फेल होने का डर लग रहा था। बुधवार को उसकी शारीरिक शिक्षा की परीक्षा थी। इसको लेकर भी वह तनाव में थी। मां के साथ वह मंगलवार को कोचिंग गई थी। लौटने के बाद थोड़ी देर भाई के साथ बातें कीं, फिर अपने कमरे में चली गई। मां के मुताबिक बुधवार के पेपर को लेकर बेटी देर रात तक कमरे में बैठकर पढ़ती रही। फिर जब कमरे में जाकर देखा तो दुपट्टे के सहारे बेटी फंदे से झूल रही थी।
वहीं कानपुर में ही एक पेट्रोल पंप कर्मचारी ने भी सुसाइड कर लिया। मरने से पहले उसने सुसाइड नोट में लिखा- ‘सॉरी, मम्मी-पापा और दीदी-जीजा। मैं जिंदगी से इस कदर ऊब गया हूं कि अब जान देने जा रहा हूं। यह अंतिम लाइन लिखकर उसने दुपट्टे से फांसी लगाकर जान दे दी। मौसेरा भाई जब घर पहुंचा तो घटना की जानकारी हुई। फतेहपुर निवासी 24 वर्षीय शुभम दुबे उर्फ सिद्धांत पेट्रोल पंप में नौकरी करता था। वह बर्रा के संघर्ष नगर में मौसा सुनील दुबे के यहां रहकर नौकरी करता था। हाल ही में सिद्धांत की मां सड़क हादसे में घायल हो गई थी। जिन्हें देखने के लिए मौसी-मौसा फतेहपुर गए थे। घर पर सिद्धांत और उसका मौसेरा भाई थे। मौसेरे भाई ने बताया कि शाम को सिद्धांत कोचिंग आए और घर की चाबी लेकर चला गया। कोचिंग पढ़ने के बाद वह घर पहुंचा तो दरवाजा उड़का हुआ था।
जिन बच्चों को माता-पिता लाड और दुलार से पालते हैं, उनकी खुशियों के लिए अपने चैन सुकून की परवाह नहीं करते, वह बच्चे जिंदगी की जंग यूं हार रहे हैं मानो उनके लिए जीवन के कोई मायने नहीं। बुधवार को ही कानपुर में आत्महत्या के 5 मामले सामने आए। मार्च महीने की बात करें तो अब तक 26 दिनों में 51 लोग जिंदगी से जंग हारकर मौत को गले लगा चुके हैं। जान देने वालों में छात्र-छात्राओं की संख्या कहीं अधिक है। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि आखिर लोग इतनी आसानी से मौत को गले कैसे लगा लेते हैं। मनोचिकित्सकों का मानना है कि वर्तमान दौर में लोगों के बीच बातचीत का अभाव हो गया है। अकेलापन इस कदर हावी है कि जिंदगी की छोटी सी परेशानी पहाड़ सी लगने लगती है।
कानपुर के रावतपुर में 10वीं के छात्र 16 वर्षीय कृष्णा तिवारी, काकादेव में ब्लैकमेलिंग से बीपीएड की छात्रा ने जान दी। बाबूपुरवा में 35 वर्षीय आटो चालक सुजीत कठेरिया, पनकी में 26 वर्षीय शिवकुमार, चकेरी के सनिगवां निवासी 48 वर्षीय काली प्रसाद, मूलगंज निवासी शुभम गुप्ता, सचेंडी में किशोरी, कल्याणपुर निवासी यश, अर्मापुर में आर्डिनेस कर्मी के बेटे आकाश सिंह, फीलखाना में दसवीं के छात्र अनुज मिश्रा, बिधनू के कठारा गांव में बाइक मैकेनिक अमित समेत मार्च के 51 ने अपनी जान दे दी।
अपने व्हाट्सएप पर ब्रह्मांड को आत्मसमर्पण करने की बात लिखकर ज्योतिषी के बेटे प्रशांत शुक्ला उर्फ प्रिंस ने आत्महत्या कर ली थी। उसने जान देने का भी अलग रास्ता चुना और कोयला जलाकर दरवाजा बंद कर सो गया। दम घुटने से उसकी मौत हो गई।
आईटीबीपी की 32वीं वाहिनी में तैनात कांस्टेबल कोरी काना रवि कुमार का शव कैंपस के जंगल में नीम के पेड़ पर रस्सी के सहारे लटकता मिला था। 27 फरवरी को हुई इस घटना की जांच पुलिस ने की तो सामने आया कि वह निजी समस्याओं से जूझ रहा था।