जिगसाना ताल, चूरु (राजस्थान): राजस्थान की झुलसा देने वाली गर्मी में भी जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी जन-जन अपनी अमृतवाणी से अभिसिंचन प्रदान कर उनके मानस को तृप्त कर रहे हैं। मंगलवार को आचार्यश्री ददरेवा से गतिमान हुए। सूर्योदय के कुछ समय बाद ही सूर्य की किरणों ने धरती को तवे की तरह गर्म करने लगीं। ऐसे में मानव-मानव का कल्याण करने वाले मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी अपने गंतव्य की गतिमान थे। रास्ते में आने वाले अनेक गांव के ग्रामीणों को आचार्यश्री के दर्शन और पावन आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य सहज प्राप्त हो गया।
लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री जब जिगसाना ताल के निकट पधारे तो अलमला ग्राम पंचायत के सरपंच श्री धर्मवीर सिंह राठौड़ ने ग्रामीणों के साथ आचार्यश्री का हार्दिक स्वागत किया। आचार्यश्री उन लोगों के समक्ष कुछ समय विराजमान होकर लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान कीं। तदुपरान्त आचार्यश्री जिगसाना ताल स्थित राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे। जहां उपस्थित श्रद्धालुओं, ग्रामीणों तथा विद्यालय प्रबन्धन से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।
विद्यालय परिसर में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान आचार्यश्री ने उपस्थित जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि भौतिकता के क्षेत्र में चक्रवर्ती से बड़ा कोई नहीं होता और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में तीर्थंकर से बड़ा कोई नहीं होता। जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ ने एक ही जन्म में चक्रवर्ती भी बने और तीर्थंकर नाम गोत्र भी प्राप्त कर लिया। ऐसा बहुत विरल प्रसंग ही होता है। सभी तीर्थंकरों का आधार शांति ही होता है। 84 लाख जीव योनियों में मानव जीवन को दुर्लभ माना गया है। मानव जीवन में सभी शांति प्राप्ति की कामना करते हैं। साधु-संत का जीवन तो शांतिमय ही होता है। जो शांत नहीं होता, वह संत नहीं होता। आदमी स्वयं भी शांति में रहे और दूसरों की भी शांति में बाधक न बने, ऐसा प्रयास होना चाहिए। वह चाहे पशु हो, पक्षी हो अथवा कोई अन्य जीव मात्र ही क्यों न हो, आदमी को किसी की भी शांति को भंग करने का कोई अधिकार नहीं है।
गुस्सा, लोभ और भय के कारण अशांति होती है। इनको कम करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के पास तमाम भौतिक साधन सुलभ हो जाएं, किन्तु उसे शांति नहीं मिल सकती। भौतिक साधनों से सुविधा और साधना से शांति की प्राप्ति होती है। शांति प्राप्ति के लिए आदमी को साधना की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने जिगसाना ताल आगमन के संदर्भ में कहा कि आज हमारा इस विद्यालय में आना हुआ है। यहां विद्यार्थियों को विभिन्न विषयों के ज्ञान के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी दिए जाएं तो उनका जीवन सार्थक हो सकता है।
आचार्यश्री के आगमन से हर्षित विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री किशनसिंह राठौड़, शिक्षक श्री वीर बहादुर सिंह और ग्राम पंचायत अलमला के सरपंच श्री धर्मवीर सिंह राठौड़ ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति अर्पित कर आचार्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त किया। तेरापंथ कन्या मण्डल-तारानगर, तेरापंथ युवक परिषद-तारानगर, श्रीमती दीपिका छल्लाणी व श्रीमती ज्योति बरमेचा ने पृथक्-पृथक् गीत के माध्यम से अपने आराध्य के श्रीचरणों की अभिवंदना की।