मिसाल बनी कलेक्टर जबलपुर की कार्रवाई, अभिभावक बोल रहे बहुत जरूरी इस तरह की कार्रवाई
भोपाल। मध्यप्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के लिए प्रदेश स्तर पर शासन भले ही तमाम दावे करे और कवायदें करे, लेकिन हालात बहुत बुरे हैं। दरअसल, शासन और प्रशासन के तमाम दावों की पोल शिक्षण सत्र की शुरुआत में ही खुलकर सामने आ रही है। खासतौर से निजी स्कूल संचालकों का अभिभावकों से दोहरा व्यवहार और शैक्षणिक व्यवस्था पर जोर से कहीं ज्यादा शिक्षा के व्यापारीकरण पर जोर ज्यादा नजर आता है। स्थिति यह है कि अपने बच्चों के स्कूलों में एडमिशन को लेकर अभिभावक परेशान हो रहे हैं, सही ढंग से स्कूलों की ओर से अभिभावकों को पहले तो मार्गदर्शित नहीं किया जा रहा और जब पेरेंट्स परेशान हो रहे हैं, तो स्कूल प्रबंधन की ओर से दुर्व्यवहार भी किया जा रहा है। यह स्थिति प्रदेश के अन्य जिलों की तो दूर राजधानी भोपाल में ही देखने मिल रही है।
इसी बीच मध्यप्रदेश के महाकौशल संभाग के जबलपुर जिले के कलेक्टर दीपक सक्सेना द्वारा निजी स्कूलों के विरुद्ध की गई कार्रवाई से मध्यप्रदेश के अन्य जिलों में भी अब यह आवाज उठने लगी है कि यदि जिले के कलेक्टर निजी स्कूलों पर इस तरह से सख्ती बरतेंगे तो स्कूलों पर नियंत्रण बनेगा। जिससे अभिभावकों को राहत मिल सकेगी।
प्रशासन का शिकंजा बेहद ज़रूरी, बनती है अप्रिय स्थितियां
उल्लेखनीय है कि निजी स्कूल, शासन और प्रशासन के नियंत्रण से अपने आपको बाहर समझते हैं। जिससे यह शिक्षा को व्यापार की तरह करने लगते हैं और बेलगाम मनमाने ढंग से स्कूल प्रबंधन अभिभावकों के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे वह बच्चों के अभिभावक से नहीं बल्कि अपने ग्राहकों से बात कर रहे हों यहां तक की दुर्व्यवहार करने से भी पीछे नहीं रहते हैं। जिससे कई बार अप्रिय स्थिति अभी निर्मित होती हैं। ऐसे में इन्हें नियंत्रित करने प्रशासन का शिकंजा कसना बेहद जरूरी है।
भोपाल के सेंट जोसेफ को-एड स्कूल में ठीक नहीं प्रबंधन के हालात
अभिभावकों की मानें तो शिक्षा के नाम पर तमाम तरह की फंड्स और तमाम शर्तों के साथ अभिभावकों से मोटी रकम तो वसूलने पूरे इंतजाम किए जाते हैं, लेकिन अभिभावकों को व्यवस्थित ढंग से ना तो समय दिया जाता है, ना ही उन्हें किसी भी प्रकार से संतुष्ट किया जाता है। यह स्थिति खासतौर से शहरों के नाम चीनी स्कूलों में देखने को मिल रही है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के ही सेंट जोसेफ को-एड जैसे नामी स्कूल को ही देखा जाए तो यहां पर अभिभावक फादर से मिलने के लिए चक्कर काट रहे हैं लेकिन उन्हें एक बार में ना तो समय बताया जा रहा है, ना ही किस तरह से संपर्क किया यह मार्गदर्शित किया जा रहा है। जिससे अभिभावकों में स्कूल प्रबंधन को लेकर चिडचिडाहट आने लगी है। स्थिति यहां तक बन रही है कि घंटों इंतजार करने के बाद यहां कई पेरेंट्स मौजूदा स्टाफ से बात करते हैं तो अप्रिय स्थिति निर्मित हो रही है।
सेंट जोसेफ को-एड स्कूल भोपाल में हैरान करने वाले हालात
अभिभावकों की मानें तो कभी कहा जाता है सीधे फादर से मिलिए कभी कहा जाता है, टोकन लेकर मिलिए तो कभी कहा जाता है, ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराइए। इस तरह से अभिभावक अपने बच्चों का एडमिशन कराने परेशान हो रहे हैं तारीख भी ठीक तरह से नहीं बताई जा रही है,ना ही फादर के मिलने का समय यदि किसी तरह से टोकन यहां पर मिल भी रहा है अभिभावकों को तो फादर के पास मिलने का वक्त नहीं है। पहले गार्ड्स अपनी तरफ से अभिभावकों कुछ भी बता रहे, बाद में फादर से आदेश नहीं मिला कह कर टाल देते हैं। गार्ड्स और मौजूदा स्टाफ फादर से मिलने ही नहीं देता और इस तरह से नई-नई बातें सामने आने से अभिभावक के परेशान होते रहते हैं। इससे कई बार स्कूल परिसर में अभिभावकों और स्कूल के स्टाफ के बीच तनातनी की स्थिति भी बन रही है। इतना ही नहीं स्कूल में सोर्स और डोनेशन जैसी बातें भी खूब चर्चाओं में हैं। यहां तक की अंडरटेबल पैसा की भी बातें सामने आ रही हैं। जिससे थक हार कर कोई अभिभावक पैसे ले देकर अपना काम बना ले। ऐसे में इस स्कूल की छवि भी धूमिल होती जा रही है।
कलेक्टर जबलपुर की कार्रवाई से अभिभावकों को मिली हिम्मत
कलेक्टर जबलपुर श्री सक्सेना द्वारा की गई करीब 34 निजी स्कूलों पर कार्रवाई के बाद मध्यप्रदेश के तमाम जिलों में भी अभिभावकों में इस बात की हिम्मत आई है कि यदि प्रशासन आगे बढ़कर इस तरह से सख्त होता है,तो प्राइवेट स्कूल संचालकों की मनमानी किसी भी स्तर पर नहीं चल सकती। अभी स्थिति यह होती है कि खासतौर से मिशनरी स्कूल एक अलग तरह का अपना आभामंडल औरा बनाकर अभिभावकों से ठीक तरह से पेश ही नहीं आते। इन्हीं स्कूलों की देखादेखी अन्य स्कूलों में भी यही स्थितियां निर्मित होती जा रही हैं, जो की शिक्षण व्यवस्था के लिए ठीक नहीं है। ऐसे में कलेक्टर जबलपुर के द्वारा की गई यह कार्यवाही पूरे प्रदेश के लिए एक मिसाल बनकर सामने आई है जिससे अभिभावकों को एक उम्मीद और राहत की किरण नजर आ रही है, जोकि यह बताने के लिए काफी है कि यदि प्रशासन चाहे तो निजी स्कूलों पर भी अपना नियंत्रण बरकरार रख सकता है।
शायद यह बातें आज के दौर के स्कूल संचालक भूल चुके हैं
वैसे भी शिक्षा जैसे मंदिर में यदि कोई अभिभावक अपने बच्चों का भविष्य बनाने किसी उम्मीद से पहुंचता है,तो यहां प्राचार्य को और स्कूल संचालक व स्टॉफ को बड़ी ही सहजता और एक सुखद मनोभाव से अभिभावकों से मेल- मुलाकात करना चाहिए क्योंकि यहां किसी बच्चे के भविष्य का निर्माण होता है। शायद यह बात आज के दौर के निजी स्कूल संचालक और प्राचार्य भूल चुके हैं। यही वजह है कि आज यह स्थितियां और दुर्दशा सामने आ रही है।