राजकोट: सौराष्ट्र की धरा पर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ सोमवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में कुचियादर से प्रस्थान किया। ग्रामीण जनता को आचार्यश्री के दर्शन और मंगल आशीर्वाद का लाभ प्राप्त हुआ। आचार्यश्री धीरे-धीरे राजकोट जिला मुख्यालय के निकट पधार रहे हैं। राजकोट में आचार्यश्री का सात जनवरी से त्रिदिवसीय प्रवास होगा और इस दौरान वर्धमान महोत्सव का आयोजन भी निर्धारित है। ऐसी कृपा को प्राप्त कर राजकोटवासी हर्ष से उल्लसित नजर आ रहे हैं। कितने-कितने श्रद्धालु आचार्यश्री की मार्गसेवा में लगे हुए हैं। लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री सोखडा में स्थित डायमण्ड पार्टी प्लॉट में पधारे, जहां प्लॉट के ऑनर सहित अन्य लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आत्मानुशासन बहुत महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। स्वयं के द्वारा स्वयं पर अनुशासन कर लेना बहुत बड़ी बात होती है। दुनिया में दूसरों पर अनुशासन की बात भी चलती है। किसी समुदाय पर, किसी राज्य अथवा व्यक्ति पर कोई-कोई शासन करता है। कही एक सामान्य व्यवस्था के अनुसार अनुशासन किया जाता है, किन्तु किसी व्यक्ति पर विशेष रूप से कठोर अनुशासन करना पड़ता है, तो वह उस व्यक्ति के लिए अच्छी नहीं होती, लेकिन कोई उद्दण्डता आदि को शांत करने के लिए अनुशासन करे, वह अभिकांक्ष्य भी हो सकता है। परिवार हो, समाज, हो राष्ट्र हो, कोई धार्मिक संगठन हो अथवा कोई संस्था हो, समाज हो, कोई राजनैतिक पार्टी हो, सभी जगह अनुशासन व्यवस्था आवश्यक होता है। देवलोक में भी अनुशासन तंत्र की व्यवस्था चलती है। हालांकि स्वर्ग में एक ऐसा भी स्थान होता है, जहां अनुशासन की आवश्यकता होती है, वहां अनुशासन भी चलता है। हालांकि स्वर्ग के ऊंची स्थिति में नेतृत्व की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वहां सिद्ध आत्माएं स्वयं अपने आप पर शासन करती हैं।
जनता में शांति स्थापित करने के लिए अनुशासन, शासन की व्यवस्था अपेक्षित होती है। कार्यपालिका है तो न्यायपालिका भी है। न्यायपालिका के समक्ष तो कोई नेता हो, मंत्री हो, न्यायपालिका किसी भी गलत आदमी को दण्डित करने का अधिकार रखती है। संविधान, अनुशासन तो लोकतंत्र की व्यवस्था के लिए भी आवश्यक है। कर्त्तव्यनिष्ठा और अनुशासन सभी नागरिकों के लिए आवश्यक होते हैं। एक सूक्त में कहा गया है कि जहां कर्त्तव्यनिष्ठा और अनुशासन नहीं है, वहां लोकतंत्र का देवता मृत्यु और विनाश को प्राप्त हो जाएगा। लोकतंत्र तो जनता के द्वारा, जनता का, जनता पर राज चलता है। लोकतंत्र भले हो, अनुशासन तंत्र तो संपूर्ण दुनिया में मान्य है।
शास्त्रकार ने कहा कि संयम और तप के द्वारा स्वयं पर स्वयं के द्वारा अनुशासन करने का प्रयास करना चाहिए। इसके माध्यम से आदमी स्वानुशासी बन जाए तो दूसरे के शासन करने का कोई आधार ही नहीं बचेगा और यदि ऐसा नहीं करने से दूसरों का कठोर शासन भी झेलना पड़ सकता है। इसलिए आदमी को स्वयं पर अनुशासन करने का प्रयास करना चाहिए। अपनी इन्द्रियों का संयम, बुरा कार्य नहीं करना और अच्छा कार्य करना आत्मानुशासन की बात हो सकती है। स्वयं के द्वारा स्वयं पर अनुशासन ही सबसे अच्छी बात हो सकती है। जो स्वयं पर अनुशासन करता है, वह कभी दूसरों पर अनुशासन भी कर सकता है। इसलिए आदमी को पहले आत्मानुशासी बनने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त डायमण्ड पार्टी प्लॉट के ऑनर श्री जयंतीभाई ने आचार्यश्री का हार्दिक स्वागत किया।