सांपला, रोहतक:हरियाणा जिले की धरती को पावन बनाने निकले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग गुरुवार को हरियाणा के एक नए जिले रोहतक की सीमा में मंगल प्रवेश किया। इस यात्रा पथ में भिवानी, चरखी दादरी, झज्जर के बाद रोहतक जिला आचार्यश्री के चरणरज से पावनता को प्राप्त हुआ।
गुरुवार को प्रातः आचार्यश्री जाखोदा से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या दस पर मंगल विहार किया। समय के साथ आसमान में चढ़ते सूर्य का आतप चौड़े राजमार्ग को मानों तवे जैसा गर्म कर रहा था। जिसके कारण गर्मी और अधिक महसूस हो रही थी। हालांकि चलती हवाओं से थोड़ी राहत जरूर थी, लेकिन सूर्य की तीव्रता लोगों को छांव खोजने को विवश कर रही थी। इन प्रतिकूल परिस्थितियों से विरत महातपस्वी महाश्रमणजी निरंतर गंतव्य की ओर गतिमान थे। आचार्यश्री ने विहार के दौरान झज्जर जिले की सीमा को पारकर रोहतक जिले की सीमा में मंगल प्रवेश किया। लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री रोहतक जिले के सांपला में स्थित श्री शिवशक्ति बाबा कालीदास धाम प्रांगण में पधारे।
इस परिसर में बने एक मंदिर के हॉल में समुपस्थित साधु-साध्वियों व श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्रों के माध्यम से जीवन व्यवहार और आध्यात्मिकता की शिक्षा भी ग्रहण की जा सकती है। शास्त्र के एक श्लोक में बताया गया कि आदमी को बिना पूछे नहीं बोलना चाहिए। कहीं कोई बात हो रही है या दो लोग बातें कर रहे हैं और जब तब वे न पूछें आदमी को नहीं बोलना चाहिए। वाणी की एक सुन्दरता है कि आदमी आवश्यकतानुसार ही अपनी बोलने की ऊर्जा लगाए। दूसरी बात बताई गई कि यदि कोई पूछे और बोलना आवश्यक हो तो आदमी को झूठ नहीं बोलना चाहिए। सभी बातें सत्य बोले ऐसा नहीं कहा गया है। इसी प्रकार आदमी कानों से बहुत कुछ सुनता है और आंखों से बहुत कुछ देखता है, किन्तु सारा कुछ देखा हुआ और सारा कुछ सुना हुआ कहने के लिए नहीं होती है। आदमी को अपनी वाणी का गोपन भी करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने गुस्से को भी विफल करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने छोटे संतों के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि यदि कभी गुस्सा आए तो थोड़े देर के लिए मौन कर लेना चाहिए और यदि वह मुश्किल लगे तो मुंह में एक मिश्री की डली रख लेनी चाहिए और दीर्घ श्वास का प्रयोग करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने जीवन में प्रिय और अप्रिय दोनों स्थितियों को धारण करने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार शास्त्र अनेक प्रकार की जीवनोपयोेगी बातों को ग्रहण कर अपने जीवन को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने शासनमाता साध्वीप्रमुखाजी का स्मरण करते हुए कहा कि लगभग पन्द्रह दिन पूर्व फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी को उनका महाप्रयाण हो गया। उन्होंने अपने जीवन में सारस्वत की साधना की। संघ के प्रति निष्ठा, भक्ति के द्वारा उन्होंने धर्मसंघ की बहुत सेवा की। इतने बड़े साध्वी समुदाय की वे लम्बे काल तक हेड बनी रहीं। आचार्यश्री ने उनकी स्मृति में ‘शासनमाता का सादर स्मरण करें हम’ गीत का आंशिक संगान किया। आचार्यश्री हाजरी का वाचन करते हुए साधु-साध्वियों को अनेक प्रेरणाएं प्रदान कीं।
आचार्यश्री की अनुज्ञा से दीक्षा पर्याय की सबसे छोटी साध्वी साम्यप्रभाजी ने लेखपत्र का उच्चारण किया तो आचार्यश्री ने उन्हें पांच कल्याणक बक्सीस किए। तत्पश्चात सभी साधु-साध्वियों ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। आश्रम के आचार्य खेमनाथजी तथा कमलनाथ महाप्रभु ने अपने उद्बोधन के द्वारा आचार्यश्री का हार्दिक स्वागत किया।