नई दिल्ली:राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना के साथ 2020 के गतिरोध के दौरान भारतीय सेना द्वारा बल प्रयोग को पीएम नरेंद्र मोदी ने मंजूरी दी थी। उन्होंने कहा है कि इस तरह की कार्रवाई भविष्य में भी की जा सकती है। इंडियन एक्सप्रेस ने यह रिपोर्ट एक किताब के हवाले से दी है।
चीन को विशेष तरीके से दी प्रतिक्रिया
मोदी@20 किताब में डोभाल ने कहा है कि सभी मौजूदा बॉर्डर मैनेजमेंट समझौतों के उलट कोविड महामारी के दौरान विरोधी ताकतों ने हमारे प्रमुख हितों को चुनौती देने की कोशिश की जिसके लिए सैन्यबल के आनुपातिक इस्तेमाल की जरूरत थी। इसे तत्काल स्तर पर मंजूरी दी गई थी। नेतृत्व और सैनिकों ने एकतरफा कार्रवाई का विरोध करने की इच्छाशक्ति दिखाई। इस संकट के दौरान हमने एक विशेष तरीके से प्रतिक्रिया दी हालांकि अन्य विकल्प भी थे। अगर देश के महत्वपूर्ण और प्रमुख हित दांव पर लगे तो कुछ का इस्तेमाल किया गया और ऐसा रहा तो कुछ और का भी इस्तेमाल किया किया जाएगा।
बता दें कि पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच गतिरोध आज भी जारी है। गलवान घाटी, चारडिंग नाला और देपसांग मैदानों में कई मसले अभी भी अनसुलझे हैं। डोभाल के मुताबिक चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग सहित विश्व नेताओं के साथ व्यक्तिगत समीकरण विकसित करने के पीएम के प्रयासों ने कई संकटों को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
डोकलाम मसले को सुलझाने की कहानी
2017 के डोकलाम गतिरोध को लेकर डोभाल ने कहा कि भारत ने गतिरोध के दौरान और संघर्ष के बाद भी बातचीत का संकल्प दिखाया। उन्होंने G-20 शिखर सम्मेलन से इतर इस मलसे पर बात करने के लिए मोदी के शी के पास जाने की घटना भी सुनाई। डोभाल ने बताया है कि अन्य सभी विकल्प समाप्त हो जाने के बाद पीएम मोदी ने व्यक्तिगत रूप से डोकलाम मसले को राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सामने उठाया। दोनों नेता तत्काल समाधान खोजने के लिए सहमत हुए। आखिरकार, कई बातचीत के बाद गतिरोध को सुलझा लिया गया। यह प्रधानमंत्री की सीधी कार्रवाई के बिना संभव नहीं होता।
सितंबर 2014 में लद्दाख के चुमार में गतिरोध को लेकर डोभाल ने कहा है कि मोदी ने इस मसले को हल करने के लिए शी जिनपिंग की भारत यात्रा के अवसर का इस्तेमाल किया। पीएम मोदी शी जिनपिंग को बिना शर्त और चीनी सैनिकों की तत्काल वापसी सुनिश्चित करने की जरूरत के बारे में समझाने में सक्षम थे।