सुरेन्द्रनगर: गुजरात के सिल्क व डायमण्ड सिटी सूरत में भव्य चतुर्मास सुसम्पन्न करने के उपरान्त गुजरात के भुज-कच्छ में मर्यादा के महामहोत्सव के लिए गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शनिवार को प्रातः चोटिला से अगले गंतव्य की ओर गतिमान हुए। मयादा महोत्सव से पहले आचार्यश्री अपनी धवल सेना संग राजकोट पधारेंगे। राजकोट भी गुजरात प्रदेश का एक अच्छा शहर है। इससे पहले ग्रामीण व कस्बों की यात्रा कर आम जनता को आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ाने वाले महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी से आशीष प्राप्ति के लिए इस क्षेत्र में सुदूर के लोगोें के उपस्थित होने का क्रम जारी है। इसके साथ ही इस यात्रा के दौरान आचार्यश्री का जैन शासन के अन्य संप्रदाय के साधु-साध्वियों से प्रायः मिलना हो रहा है। यह होने वाला मधुर मिलन न केवल संघप्रभावक, अपितु आचार्यश्री के सद्भावना के संदेश को विशेष रूप से स्थापित करने वाला भी रहा है। लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री बोरियानस (मोटी मोरडी) में स्थित श्री महावीरपुरम् तीर्थ में पधारे। तीर्थ से संबंधित लोगों ने युगप्रधान अनुशास्ता का भावपूर्ण स्वागत किया।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित श्रद्धालु जनता को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि प्रश्न किया गया कि निर्वाण को कौन-सा जीव प्राप्त कर सकता है? जन्म-मरण से मुक्त तथा आठो कर्मों से मुक्त अवस्था निर्वाण की अवस्था होती है। जहां शरीर, वाणी और मन नहीं होता, राग-द्वेष भी नहीं होता, वहां विशुद्ध परमात्मा है। उस अवस्था को केवल मनुष्य के अलावा अन्य कोई जीव प्राप्त नहीं कर सकता। मनुष्यों में भी संज्ञी मनुष्य ही उस अवस्था अर्थात् मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। उसमें भी जो भव्य जीव होते हैं, वे ही उस अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं। मोहनीय कर्म को क्षीण किए बिना, केवल ज्ञान और केवल दर्शन की प्राप्ति संभव नहीं होती।
हम इस श्री महावीरपुरम् तीर्थ के इस स्थान में आए हैं। भगवान महावीर ने मोक्ष प्राप्त करने से पहले कितना तप किया, कितनी साधना की। इसके साथ ही उन्होंने उससे पहले के भवों में कितनी-कितनी तपस्याएं की थीं। साढ़े बारह वर्षों की तपस्या के बाद राग-द्वेष से मुक्त होकर तीर्थंकर बने और कितने-कितने लोगों का कल्याण किया। इसलिए निर्वाण उसी को प्राप्त हो सकता है, जिसके जीवन में उच्च कोटि की धर्म साधना होती है। धर्म की साधना करने वाला मनुष्य ही मोक्षश्री का वरण कर सकता है। जो आदमी शुद्ध चेतना और शुद्ध भावधारा वाला होता है, उसके भीतर धर्म ठहरता है। शुद्धता और ऋजुता का मानों संबंध है। जब ऋजुता होती है तो आदमी के भावधारा की शुद्धि हो सकती है। सरलमना आदमी ऋजुता को प्राप्त कर सकता है। जहां छल, कपट, झूठ आदि होता है, वहां सरलता आ ही नहीं सकती। आदमी को ईमानदार, सरल और निश्छल रहने का प्रयास करना चाहिए। सरलता सच्चाई से जुड़ा हुआ है। जहां तक संभव हो, महावीर के अनुयायी हो तो भगवान महावीर की सिद्धावस्था के समान सिद्धता को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। साधुता से सिद्धता की प्राप्ति हो सकती है। सरलता और ऋजुता से सिद्धता की दिशा में आगे बढ़ा सकता है।
मंगल प्रवचन के उपरान्त श्री महावीरपुरम तीर्थ के ट्रस्टी श्री भावेश भाई ने आचार्यश्री के स्वागत मंे अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।