सांतलपुर:गुजरात की पग-पग की धरती जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी की चरणरज से पावनता को प्राप्त हो रही है। लगभग ढाई महीने तक कच्छ जिले का गांव-गांव, नगर-नगर, कस्बा-कस्बा पावन होता रहा है तो वर्तमान में गुजरात का पाटन जिला व उसके गांव आदि पूज्यचरणों से पावनता को प्राप्त हो रहे हैं। भारत के पश्चिम क्षेत्र में स्थित गुजरात प्रदेश को मानों शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी आध्यात्मिकता से भी समृद्ध बना रहे हैं। गुजरातवासी अपने आराध्य की ऐसी कृपा प्राप्त कर अभिभूत नजर आ रहे हैं। तेरापंथ समाज ही नहीं, आचार्यश्री की इस विस्तृत यात्रा अन्य जैन एवं जैनेतर जनता भी लाभान्वित हो रही है।
शुक्रवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना संग रोजू से मंगल प्रस्थान किया। प्रतिदिन तापमान में होती वृद्धि होती जा रही है। ऐसे में जहां सामान्य लोग अब कड़ी धूप में निकलने से परहेज कर रहे हैं, वहीं शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी जनकल्याण के लिए निरंतर विहार कर रहे हैं। जन-जन को मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए शांतिदूत आचार्यश्री लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर सांतलपुर गांव में स्थित मॉडल स्कूल में पधारे।
मॉडल स्कूल परिसर में उपस्थित श्रद्धालु जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जीवन के लिए आत्मा रूपी मूल तत्त्व के साथ शरीर का होना भी आवश्यक होता है। जब तक शरीर में आत्मा होती है, तभी तक जीवन होता है। जैसे शरीर को आत्मा छोड़कर जाती है, वहां जीवन समाप्त हो जाता है। इस शरीर के माध्यम से धर्म की साधना और दूसरों की सेवा आदि भी कर सकते हैं। इसलिए शरीर का भी बहुत बड़ा महत्त्व है। शरीर सक्षम और स्वस्थ रहे, शरीर समर्थ रहे तो अच्छा कार्य हो सकता है, धर्म का आचरण हो सकता है, किसी की अच्छी सेवा हो सकती है।
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, इन्द्रिय शक्ति क्षीण होने लगती हैं। आंखों से कम दिखने लगता है, कानों से कम सुनाई देने लगता है, हाथ-पैर में दर्द आदि होने लगता है। इन सभी प्रतिकूलताओं के आ जाने के बाद भला कौन-सी साधना और सेवा आदि की जा सकती है। शरीर की सुरक्षा पर आदमी विशेष ध्यान भी देते हैं। बीमारी आ जाती है तो उसके ईलाज के लिए आयुर्वेदिक, अंग्रेजी आदि अनेक पद्धतियां भी चिकित्सा के लिए चलती हैं।
शास्त्रकार ने मानव को आगाह करते हुए कहा कि जब तक आदमी की इन्द्रिय सक्षम है, शरीर रोगमुक्त है, शरीर सक्षम होता है, तब तक आदमी को अध्यात्मिक-धार्मिक साधना व दूसरों की सेवा में नियोजित करने का प्रयास करना चाहिए। शरीर सक्षम है तो ध्यान, योग अच्छे ढंग से हो, धार्मिक साधना-आराधना आदि अच्छी चले तो अच्छा लाभ प्राप्त हो सकता है। सफलता के लिए आदमी को परिश्रम करने का प्रयास करना चाहिए। विद्यार्थियों में भी परिश्रमशीलता होनी चाहिए। परिश्रमशीलता होती है तो ज्ञान का अच्छा उपार्जन हो सकता है। शिक्षा के साथ, अच्छे संस्कारों के विकास भी प्रयास करना चाहिए। अच्छे संस्कार के लिए अहिंसा, सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति जैसे संकल्पों को जीवन को उतारने का प्रयास करना चाहिए। शरीर की सक्षमता तक आदमी को अच्छा धर्माचरण करने का प्रयास करना चाहिए।
मॉडल स्कूल के प्रिंसिपल श्री नेहल भाई रावल ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी।