हिंदू धर्म में सभी व्रत-त्योहारों का विशेष महत्व होता है। इन्हीं में से एक व्रत है प्रदोष व्रत। प्रदोष व्रत भगवान शंकर को समर्पित माना गया है। ह व्रत त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। हर माह में दो बार प्रदोष व्रत पड़ता है। एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। मान्यता है कि प्रदोष व्रत पर विधि- विधान से भगवान शंकर की पूजा- अर्चना करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। आश्विन माह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत आज यानी 7 अक्टूबर को है। प्रदोष व्रत में प्रदोष काल में पूजा का विशेष महत्व होता है। शुक्रवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। जानें शुक्र प्रदोष व्रत पूजा- विधि, महत्व, शुभ मुहूर्त और सामग्री की पूरी लिस्ट…
मुहूर्त-
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 07 अक्टूबर को सुबह 07 बजकर 27 मिनट पर प्रारंभ हो रही है, जिसका समापन 08 अक्टूबर को सुबह 05 बजकर 24 मिनट पर होगा। प्रदोष व्रत के पूजन के लिए शुभ मुहूर्त 07 अक्टूबर को शाम 06 बजे से रात 08 बजकर 28 मिनट तक रहेगा।
प्रदोष व्रत पूजा- विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें।
स्नान करने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र पहन लें।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
अगर संभव है तो व्रत करें।
भगवान भोलेनाथ का गंगा जल से अभिषेक करें।
भगवान भोलेनाथ को पुष्प अर्पित करें।
इस दिन भोलेनाथ के साथ ही माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा भी करें। किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
भगवान शिव को भोग लगाएं। इस बात का ध्यान रखें भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
भगवान शिव की आरती करें।
इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।
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प्रदोष व्रत का महत्व-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व होता है।
गुरु प्रदोष व्रत करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
इस व्रत को करने से संतान पक्ष को लाभ होता है।
प्रदोष व्रत पूजा- सामग्री-
पुष्प, पंच फल पंच मेवा, रत्न, सोना, चांदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें,तुलसी दल, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री आदि।
शुक्र प्रदोष व्रत की कथा
कहा जाता है कि क नगर में तीन मित्र रहते थे। राजकुमार, ब्राह्मण कुमार और तीसरा धनिक पुत्र। राजकुमार और ब्राह्मण कुमार विवाहित थे। धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था, लेकि गौना शेष था। एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे। ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है। धनिक पुत्र ने यह सुना तो तुरन्त ही अपनी पत्नी को लाने का निश्चय कर लिया। तब धनिक पुत्र के माता-पिता ने समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैं। ऐसे में बहू-बेटियों को उनके घर से विदा करवा लाना शुभ नहीं माना जाता लेकिन धनिक पुत्र ने एक नहीं सुनी और ससुराल पहुंच गया। ससुराल में भी उसे मनाने की कोशिश की गई लेकिन वो ज़िद पर अड़ा रहा और कन्या के माता पिता को उनकी विदाई करनी पड़ी। विदाई के बाद ति-पत्नी शहर से निकले ही थे कि बैलगाड़ी का पहिया निकल गया और बैल की टांग टूट गई।
दोनों को चोट लगी लेकिन फिर भी वो चलते रहे। कुछ दूर जाने पर उनका पाला डाकूओं से पड़ा। जो उनका धन लूटकर ले गए। दोनों घर पहूंचे। वहां धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया। उसके पिता ने वैद्य को बुलाया तो वैद्य ने बताया कि वो तीन दिन में मर जाएगा। जब ब्राह्मण कुमार को यह खबर मिली तो वो धनिक पुत्र के घर पहुंचा और उसके माता पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। और कहा कि इसे पत्नी सहित वापस ससुराल भेज दें। धनिक ने ब्राह्मण कुमार की बात मानी और ससुराल पहुंच गया जहां उसकी हालत ठीक होती गई। यानि शुक्र प्रदोष के माहात्म्य से सभी घोर कष्ट दूर हो गए।