नई दिल्ली:कोरोना महामारी ने आम और खास सभी की आर्थिक हालत तंग कर दी है। एक के बाद दूसरी और फिर तीसरी लहर ने आम लोगों से लेकर कारोबारियों, बैंकों और गोल्ड लोने देने में आगे रहने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। रोजगार खोने या आमदनी घटने से आम लोगों के पास अपना सोना वापस लेने के लिए पैसे नहीं हैं। वहीं कारोबार घटने से एनबीएफसी और बैंकों को 15 से 20 फीसदी तक सस्ती पेशकश के बावजूद सोने के खरीदार नहीं मिल रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि गोल्ड लोन डिफॉल्ट की मुसीबत जितनी दिख रही उससे कहीं अधिक बड़ी है उसमें आने वाले समय के लिए खतरनाक आर्थिक संकेत छिपे हैं। उनका कहना है कि गोल्ड लोन डिफॉल्टर का बढ़ता आंकड़ा और फाइनेंस कंपनियों की तरफ से सोने की नीलामी करना आर्थिक मंदी की ओर इशारा करता है। पिछले तीन साल से परेशान आम आदमी के जीवन में आई यह ऐसी आर्थिक तंगी है जो दिखती नहीं है।
कोरोना की पहली लहर में गोल्ड लोन की रफ्तार दोगुनी बढ़ गई थी। जबकि दूसरी लहर में यह और तेज हो गई। लेकिन अब मुश्किल अलग तरह की है। गोल्ड लोन लेने वाले आमदनी घटने या कारोबार में नुकसान होने से अपना सोना वापस लेने नहीं आ रहे। इससे बैंकों के मुकाबले एनबीएफसी ज्यादा परेशान हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बैंक आमतौर पर ज्वेलरी के बदले कर्ज देते हैं और सोने के सिक्के या बिस्किट नहीं लेते हैं। जबकि एनबीएफसी सभी तरह का सोना स्वीकार करती हैं। ऐसे में उनके गोल्ड लोन के ग्राकह ज्यादा होते हैं और गोल्ड लोन भी अधिक होता है। अब गोल्ड लोन पर डिफॉल्ट की स्थिति में वैसे सोने को बेचना मुश्किल हो रहा है।
एनबीएफसी या बैंक जब सोने की नीलामी करते हैं तो उसे ज्वेलर खरीदते हैं। लेकिन कोरोना की दो गंभीर लहर के बाद उनकी भी स्थिति अच्छी नहीं है। बुलिअन एंड ज्वेलर्स एसोसिएसन दिल्ली के अध्यक्ष योगेश सिंघल का कहना है कि कोरोना संकट और महंगाई को देखते हुए ग्राहक के लिए घर चलाना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में सोने की खरीदारी बेहद जरूरी होने पर हो रही है। इससे सोने की खरीद घटी है। ऐसे में जब ज्वेलर के पास खरीदार नहीं है तो वह 15 या 20 फीसदी सस्ता सोना लेकर भी क्या करेगा। इस स्थिति में नीलामी को लेकर अब आकर्षण नहीं है।
बैंक या एनबीएफसी के लिए सोने की नीलामी बहुत आसान नहीं होती है। गोल्ड लोन से जुड़े एक शीर्ष बैंकर ने कहा कि नीलामी के लिए बैंक-एनबीएफसी को कई बार नोटिस देनी होती है जो खर्चीली प्रक्रिया है। इसके बाद उसकी एक न्यूनतम कीमत रखनी पड़ती है जिसका आकलन सोने के तत्कालिन और मौजूदा भाव के आधार पर होता है। उन्होंने बताया कि यदि सोने की नीलामी में लिए गए कर्ज और अन्य शुल्क को घटाकर ज्यादा राशि प्राप्त होती है तो ग्राहक को बैंक ड्रॉफ्ट के जरिये वापस कर दी जाती है। हालांकि, प्रक्रिया खर्चीली होने से ग्राहक के लिए ज्यादा फायदेमंद नहीं होती है। इसके अलावा डिफॉल्टर होने से उसे आगे गोल्ड लोन मिलना भी मुश्किल हो जाता है।
गोल्ड लोन की ईएमआई समय पर चुकाने वाले ग्राहकों को सोने की कीमत बढ़ने पर फायदा होता है। कीमत बढ़ने पर बैंक ग्राहक को एक खास अनुपात में टॉप-अप लोन की सुविधा देते हैं। इससे कर्ज की अवधि भी बढ़ जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि आपने एक लाख रुपये का गोल्ड लोन दिया है लेकिन आपके गिरवी रखे सोने की कीमत 20 हजार रुपये बढ़ जाती है तो बैंक-एनबीएफसी उसका 70 से 80 फीसदी यानी 14 से 16 हजार रुपये का टॉप-अप की पेशकश करते हैं।