सरदारशहर, चूरु:सरदारशहर की धरती पर तेरापंथ के सरदार, सरदारशहर के लाल महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सरदारशहर की लाडली मुमुक्षु निशा डागा को युगप्रधान समवसरण में शुक्रवार को जैन भगवती दीक्षा प्रदान की तो सरदारशहरवासी प्रसन्नता से झूम उठे। लगभग नौ वर्षों बाद सरदारशहर की धरा को पावन बनाने पहुंचे आचार्यश्री की एक-एक अनुकंपा और भव्य आयोजनों का सौभाग्य प्राप्त कर जन-जन उल्लसित और उत्साहित नजर आ रहा है।
शुक्रवार को प्रातः सरदारशहर की धरती पर दीक्षा समारोह का आयोजन सरदारशहरवासियों को हर्षित बनाए हुए था। प्रातः नौ बजे ही आचार्यश्री युगप्रधान समवसरण के भव्य मंच पर विराजमान हुए तो प्रवचन पंडाल जयकारों से गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ समारोह का शुभारम्भ हुआ। मुमुक्षु मानवी आंचलिया ने दीक्षार्थी निशा डागा का परिचय प्रस्तुत किया। पारमार्थिक शिक्षण संस्था के संयोजक श्री मोतीलाल जीरावला ने आज्ञा पत्र का वाचन किया। दीक्षार्थी निशा के पिता व माताजी ने लिखित पत्र को पूज्यप्रवर के कर कमलों में समर्पित किया। संयम पथ पर अग्रसर होने जा रही दीक्षार्थी निशा डागा ने अपने आराध्य के समक्ष अपनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी। मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने दीक्षा के महत्त्व को व्याख्यायित किया।
अध्यात्म जगत के महासूर्य तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आत्मा अनादि, अनंत काल से जन्म-मृत्यु की परंपरा में चली आ रही है। बार-बार जन्म लेना और बार-बार मृत्यु को प्राप्त होते-होते हमारी आत्मा ने अब तक कितने जन्म ले लिए होंगे और मृत्यु को प्राप्त कर चुकी है। संसार में दुःख भी है और सुख भी है, किन्तु दुःख अधिक है। इस संसार में जन्म भी दुःख है, मृत्यु भी दुःख है, बुढ़ापा दुःख है और बीमारी भी दुःख है। इन दुःखों से बचने का एक उपाय है संन्यासी बन जाना। साधु जीवन में सम्यक्त्व का पालन करते हुए अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास करना चाहिए। एक धर्म ही है जो इस जीवन में और आगे परलोक में भी व्यक्ति का साथ देता है।
मन को टटोला, भावना पुष्ट जानकर प्रदान की साध्वी दीक्षा
तदुपरान्त आचार्यश्री ने तेरापंथ के प्रथम आचार्य भिक्षु सहित समस्त पूर्वाचार्यों का स्मरण करते हुए कहा कि दीक्षा की आज्ञा लिखित रूप में तो प्राप्त हो गई है, किन्तु एक बार पुनः मौखिक बात हो। दीक्षार्थी के माता-पिता व अन्य परिजनों की स्वीकृति के उपरान्त आचार्यश्री ने दीक्षार्थी मुमुक्षु निशा डागा के मनोभाव का परीक्षण कर दीक्षा की भावना पुष्ट जानकर आर्षवाणी का उच्चारण करते हुए सर्व सावद्य योगों का त्याग कराते हुए साध्वी दीक्षा प्रदान की। आचार्यश्री के दीक्षा प्रदान करते हुए पूरा पंडाल ‘जय-जय ज्योतिचरण, जय-जय महाश्रमण’ के जयकारों से गूंज उठा। नवदीक्षित साध्वी ने आचार्यश्री को सविधि वंदन किया। आचार्यश्री ने अतीत की आलोयणा कराई। आचार्यश्री के अनुज्ञा से मुख्यनियोजिकाजी ने नवदीक्षित साध्वी का केश लुंचन किया तथा रजोहरण प्रदान किया।
निशा बनी साध्वी नमनप्रभा
आर्षवाणी के उच्चारण करते हुए आचार्यश्री ने केशलुंचन विधि व राजोहरण प्राप्त हो जाने के उपरान्त आचार्यश्री ने नवदीक्षित साध्वी को संयम जीवन के शुभारम्भ के अवसर पर नया नाम प्रदान किया-साध्वी नमनप्रभा। एकबार पुनः प्रवचन पंडाल जयघोष से गूंज उठा। उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं ने नवदीक्षित साध्वी को वंदन किया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने अनुशासन का ओज आहार प्रदान करते हुए नवदीक्षित साध्वी को अनेकानेक प्रेरणाएं प्रदान कीं। कार्यक्रम के अंत में श्री रूपचंद दूगड़ ने अपनी कृति पूज्यचरणों में लोकार्पित की।
आचार्य महाश्रमण जीवन दर्शन प्रदर्शनी
तेरापंथ भवन में प्रवास व्यवस्था समिति के अंतर्गत तेयुप एवं तेमम के निर्देशन में तेरापंथ किशोर मंडल एवं तेरापंथ कन्या मंडल द्वारा श्भगवान महावीर एवं आचार्य श्री महाश्रमण जीवन दर्शन प्रदर्शनीश् लगाई गई है। जिसमें भगवान महावीर के जीवन एवं आचार्यश्री महाश्रमण जी की यात्रा के बारे में चित्रों एवं कलाकृतियों द्वारा दर्शाया गया है।