बिनोल:युग प्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती शासन श्री मुनि रविंद्र कुमार जी एवं मुनि श्री अतुल कुमार जी तेरापंथ भवन बिनोल में विराज रहे हैं।
➡रात्रि कालीन प्रवचन माला में मुनि श्री अतुल कुमार जी ने कहा दृष्टि दो प्रकार की होती है । एक गुणग्राही और दूसरी छिद्रान्वेषी दृष्टि । गुणग्राही व्यक्ति खूबियों को और छिद्रान्वेषी खामियों को देखता है । गुणग्राही कोयल को देखता है तो कहता है कि कितना प्यारा बोलती है और छिद्रान्वेषी देखता है तो कहता है कि कितनी बदसूरत दिखती है । गुणग्राही मोर को देखता है तो कहता है कि कितना सुंदर है और छिद्रान्वेषी देखता है तो कहता है कि कितनी भद्दी आवाज है , कितने रुखे पैर हैं । गुणग्राही गुलाब के पौधे को देखता है तो कहता है कि कैसा अद्भुत सौंदर्य है , कितने सुंदर फूल खिले हैं और छिद्रान्वेषी देखता है तो कहता है कि कितने तीखे कांटे हैं । जो गुणों को देखता है वह बुराइयों को नहीं देखता। कबीर ने बहुत कोशिश की बुरे आदमी को खोजने की । गली-गली , गांव-गांव खोजते रहे परंतु उन्हें कोई बुरा आदमी ना मिला । मालूम है क्यों? क्योंकि कबीर भले आदमी थे। भले आदमी को बुरा आदमी कैसे मिल सकता है । कबीर ने कहा “बुरा जो खोजन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोई” । कबीर अपने आप को बुरा कह रहे हैं । यह एक अच्छे आदमी का परिचय है क्योंकि अच्छा आदमी स्वयं को बुरा और दूसरों को अच्छा कह सकता है । बुरे आदमी में यह सामर्थ्य नहीं होती । वह तो आत्मप्रशंसक और परनिंदक होता है । दोष ढूंढने की आदत पड़ गई , वे हजारों गुण होने पर भी दोष ढूंढ निकाल लेते हैं और जिनकी गुण ग्रहण की प्रकृति है वे हज़ार अवगुण होने पर भी गुण देख ही लेते हैं क्योंकि दुनिया में ऐसी कोई भी चीज़ नहीं है जो पूरी तरह से गुण संपन्न हो या पूरी तरह से गुणहीन हो । एक ना एक गुण या अवगुण सभी में होते हैं । मात्र ग्रहणता की बात है कि आप क्या ग्रहण करते हैं गुण या अवगुण । दृष्टि का परिवर्तन जीवन का परिवर्तन है । हमारी अच्छी दृष्टि संसार को अच्छा बना देती है और बुरी दृष्टि संसार को बुरा बना देती है । इसलिए सृष्टि को नहीं, दृष्टि को बदलें । संसार बहुत बुरा है, गंदा है किंतु कभी सोचा है हमारी आंख कैसी है ? हम इतनी बुराई देखते हैं आंख से अच्छा नहीं देख पा रहे हैं । अपनी आंख बुरा देख रही है । माना कि कुछ बुरी बुराइयां हैं पर सृष्टि इतनी भी बुरी नहीं है जितनी हमारी दृष्टि बुरी है।
दृष्टि के बदलते ही सृष्टि बदल जाती है । अतः दृष्टि को बदलें, सृष्टि को नहीं । दृष्टि का परिवर्तन संभव है सृष्टि का नहीं । सम्यक-दृष्टि की दृष्टि में सभी कुछ सत्य होता है और मिथ्या-दृष्टि बुराइयों को देखता है । अच्छाइयां और बुराइयां हमारी दृष्टि पर आधारित है । नेगेटिव सोच वाला इंसान जिंदगी में ज्यादा सफल नहीं हो पाता है । *यदि जिंदगी जीने का आपका नजरिया पॉजिटिव है तो फिर आप यकीनन सफलता की सीढ़ी चढ़ेंगे । हमेशा कहा जाता है कि जिंदगी में अगर अपने लक्ष्य को हासिल करना है तो आपको पॉजिटिव सोच रखनी होगी । नज़रिया यानि कि आपकी नज़र में आपने क्या देखा, सोचा । नज़रिया हमारे व्यक्तित्व का एक अहम हिस्सा है । हमारा नज़रिया ही हमारे जीवन यात्रा की दशा और दिशा तय करता है । सहज रूप में देखें तो आप किसी चीज़ को किस नज़र और इरादे से देखते हैं वही आपके जीवन का नज़रिया होता है । यह सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का होता है । जब आपकी नज़र नकारात्मक हो जाती है तो नज़रिया निराशा और दुख का सबब बन जाता है और जब यह सकारात्मक रूप ले लेता है तो जीवन सहज और सरल दिखने लगता है ।
मुनि श्री रविंद्र कुमार जी ने मंगल पाठ सुनाया । प्रवचन में काफ़ी अच्छी संख्या में लोग उपस्थित थे।