–इच्छाएं दुःख का कारण, इच्छाओं का करें सीमाकरण : सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमण
-जीतो व जेटीएफ के चेयरमेन आदि ने किए आचार्यश्री के दर्शन, प्राप्त किया आशीर्वाद
-4 मई को भगवान महावीर युनिवर्सिटी में आयोजित है महातपस्वी महाश्रमण का 50वां दीक्षा महोत्सव
उधना, सूरत (गुजरात) : सूरत महानगर को आध्यात्मिकता की चमक प्रदान करने को लगभग पन्द्रह दिनों के प्रवास और विहार के दौरान बुधवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग सूरत शहर के प्रमुख क्षेत्र सिटीलाइट को आलोकित करने हेतु सिटीलाइट के तेरापंथ भवन में उदित हुए। आचार्यश्री के मंगल पदार्पण से मानों सिटीलाइट की लाइट ही कई गुनी बढ़ गई।
बुधवार को प्रातः की मंगल बेला में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना संग मंगल प्रस्थान किया। आचार्यश्री का विहार सिटीलाइट की ओर हो रहा था, तो उस क्षेत्र के श्रद्धालुओं का उत्साह अपने चरम पर था। लोगों की विशाल उपस्थिति से ऐसा लग रहा था मानों स्वागत जुलूस का शुभारम्भ उधना से ही हो गया हो। हजारों चरण ज्योतिचरण का अनुगमन करते हुए सूरत की सड़कों पर गतिमान थे। गूंजते जयघोष से सम्पूर्ण वातावरण महाश्रमणमय बन रहा था। जन-जन को अपने आशीष से लाभान्वित करते हुए आचार्यश्री गतिमान थे। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री सिटीलाइट स्थित विशाल तेरापंथ भवन परिसर में पधारे। यहां आचार्यश्री का एकदिवसीय प्रवास निर्धारित है।
महाप्रज्ञ सभागार के विशाल परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम मंे उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के भीतर विभिन्न संदर्भों से जुड़ी हुई इच्छाएं होती हैं। भौतिक इच्छाएं भी होती हैं तो कई आध्यात्मिक, धार्मिक अथवा अलौकिक इच्छाएं भी होती है। छह प्रकार की लेश्याओं के कारण भावधारा में परिवर्तन होता है तो उसके अनुसार इच्छाएं भी परिवर्तित होती हैं। दूसरों के प्रति हिंसा, हत्या, घृणा, ईष्या आदि की भावना निम्न कोटि की इच्छा, किसी का कल्याण करने, दूसरों के दुःखों को दूर करने की इच्छा उच्च कोटि की इच्छा होती है।
इच्छाएं आकाश के समान अनंत होती हैं। सांसारिक मनुष्य को यदि सोने-चांदी के पहाड़ भी प्राप्त हो जाएं तो उसके भीतर और अधिक पाने की इच्छा प्रबल हो सकती है। जिस प्रकार आकाश का कोई अंत नहीं होता, उसी प्रकार इच्छाएं भी अनंत होती हैं। इच्छाओं का कोई अंत नहीं है। इच्छाएं ही दुःख का कारण भी बनती हैं। आदमी की हर इच्छा पूरी न हो तो आदमी दुःखी और व्यथित हो जाता है।
गृहस्थ के पांचवा अणुव्रत बताया गया है इच्छा परिमाण व्रत है। इसी प्रकार भोगोपभोग परिमाण संकल्प के माध्यम से भी इच्छाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है। इच्छाओं का सीमाकरण हो जाए तो आदमी अनावश्यक तनाव, चिंता आदि से मुक्त हो सकता है। भोगोपभोग परिमाण के द्वारा भोग पर संयम हो जाए तो आत्मा निर्मल बन सकती है। आदमी अपने जीवन में श्रावकत्व को पाले।
आचार्यश्री ने सिटीलाइट आगमन के संदर्भ में कहा कि परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के साथ मैं भी इस तेरापंथ भवन में आना हुआ था। यहां अनेक ऐतिहासिक कार्य भी हुए थे। आज यहां आना हुआ है। यहां की जनता में अच्छी धार्मिक जागरणा होती रहे।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त गत चतुर्मास सिटीलाइट में करने वाले मुनि उदितकुमारजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। मुनि अनंतकुमारजी ने भी अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। आचार्यश्री के दर्शन को पहुंचे जीतो के चेयरमेन श्री सुखलाल नाहर व जेटीएफ के चेयरमेन श्री विनोद दुगड़ ने अपनी अभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त किया। सिटीलाइट तेरापंथ भवन के सह मैनेजिंग ट्रस्टी श्री अनिल बोथरा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। तेरापंथ कन्या मण्डल की कन्याओं ने गीत का संगान का संगान किया।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी का 50वां दीक्षा महोत्सव 4 मई को सूरत महानगर के भगवान महावीर युनिवर्सिटी में आयोजित है। पूरे तेरापंथ धर्मसंघ में आचार्यश्री के दीक्षा के पचास वर्ष की सम्पन्नता के संदर्भ में विशेष उत्साह नजर आ रहा है। इस आयोजन में देश भर से हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावना है। आचार्यश्री गुरुवार को प्रातः सिटीलाइट से विहार कर भगवान महावीर युनिवर्सिटी परिसर में पधारेंगे।