जमशेदपुर:झारखंड की सोना उगलने वाली एकमात्र स्वर्णरेखा नदी कभी पूरे देश में मशहूर हुआ करती थी। हजारों परिवार इस नदी का बालू छानकर सोना के कण निकालकर अपनी जीविका चलाते थे। लोगों का परिवार पालने वाली यह नदी आज नाले में तब्दील होने लगी है। झारखंड की राजधानी रांची से मात्र 16 किमी दूर राष्ट्रीय राजमार्ग 23 पर स्थित पिस्का नगड़ी के करीब 15 किमी दक्षिण में एक जलकुंड है। यह स्वर्णरेखा नदी का उद्गम स्थल है। इसे लोग रानीचुआं के नाम से जानते हैं। इसी कुंड से प्रवाहित जल आगे चलकर विशाल स्वर्णरेखा का रूप धारण करता है।
कोयल और कारो नदी का भी उद्गम
लोगों ने इसे वर्षों पूर्व कुआं का रूप दे दिया है। इस स्थान की खासियत यह है कि पिस्का नगड़ी के अगल-बगल के क्षेत्रों में ही कोयल और कारो नदी का भी उद्गम है। रानीचुआं पांडू गांव में है।
पांडवों ने अज्ञातवास में गुजारा था समय
लोकगाथा है कि महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास का कुछ समय यहां गुजारा था। तब यहां विशाल जंगल हुआ करता था। जब पांडवों को प्यास लगी तो बाण चलाकर अर्जुन ने पानी निकाला था। एक कहावत यह भी है कि पहले एक राजा का महल था और उस महल के अंदर ही अंदर एक सुरंग थी, जिसका निकास इस जलकुंड में था। इसी जलकुंड में महल की रानी स्नान करती थी। इसी कारण जलकुंड का नाम रानीचुआं पड़ा। परंतु इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नजर नहीं आता।
लकड़ी के पीपे से बहता था जलकुंड
करीब 100 वर्ष पहले यह जलकुंड एक लकड़ी के पीपे से बहता था। इसी पीपे में एक सोने की हथेली थी, जिसमें पांच उंगलियों के निशान थे। इसीलिए यह नदी स्वर्णरेखा कहलाई। दूसरा सत्य यह है कि स्वर्णरेखा के जल में स्वर्ण कण पाए जाते हैं। कई स्थानों पर आज भी लोग स्वर्ण कण निकालते हैं। पंच परगना क्षेत्र यानी की धुंडू, तमाड़ और सोनाहातु गांवों के लोग आज भी सोना नदी से निकालते हैं। इसकी प्रक्रिया जटिल जरूर है और उसकी कीमत भी उन्हें नहीं मिलती है। परंतु सोने के कण जरूर निकलते हैं।
कचरा से पटती जा रही स्वर्णरेखा
स्वर्णरेखा नदी कचरा से पटती जा रही है। कई जगहों पर तो कूड़ा-कचरा नदी के किनारे फेंका जा रहा है, जो सीधे नदी में गिर रहा है। नदियों का एरिया के कम होने का एक प्रमुख कारण यह भी है। रांची से लेकर जमशेदपुर के बीच में स्वर्णरेखा नदी संकरी होती जा रही है। सभी जगहों पर चौड़ाई अलग-अलग है। स्वर्णरखा को प्रदूषित करने का काम हटिया के निकट से शुरू हो जाता है जहां कल-कारखाने की गंदगी इसमें प्रवाहित कर दी जाती है। कोयले की छाई, कारखाने का केमिकल तो इसमें जाता ही है कई स्थानों पर सीवरेज का पाइप टूट जाने से नालों के माध्यम से यह नदी में ही बहाया जा रहा है।