दुनिया के सर्वाधिक शक्तिशाली कहे जाने वाले देश में कुछ वर्षों पूर्व एक अनूठा प्रयोग हुआ — एक व्यावसायिक व्यापारी, जिसे राजनीति से उतना ही सरोकार था जितना बंदर को सितार बजाने से — वह अमेरिका का राष्ट्रपति बन बैठा। नाम था डॉनल्ड ट्रंप। अब यद्यपि उनका कार्यकाल बीत चुका है, किंतु आत्मप्रशंसा एवं बदले की राजनीति के यज्ञ में आहुति डालने का उनका उत्साह किंचित भी मंद नहीं पड़ा है।
हुआ यह कि जब से भारतवर्ष ने iPhone निर्माण में अग्रणी भूमिका निभानी आरंभ की है, और जब से Apple कंपनी के मुखिया श्री टिम कुक ने अपने निर्मल मस्तिष्क से यह निर्णय लिया कि भारत में निर्माण सस्ता, सुगम और सुरक्षित है — तभी से अमेरिका के राष्ट्रपति महोदय के हृदय में देशभक्ति की ज्वाला भड़क उठी।
“भारत में iPhone? कुक को ही कुक कर दूंगा!”
यह कोई फिल्मी संवाद नहीं, वरन् वास्तविक चेतावनी है जो डॉनल्ड ट्रंप ने स्वयं अपने मुखारविंद से दी। उन्होंने टिम कुक को धमकाया कि यदि Apple भारत में iPhone बनाएगा तो वे उस पर भारी टैरिफ लाद देंगे और कुक को “कुक” कर देंगे।
अब इस वक्तव्य में भाषा का स्तर चाहे कुछ भी हो, व्याकरण चाहे रोया हो, परंतु संदेश स्पष्ट है — ट्रंप को न भारत का विकास सुहाता है, न टिम कुक की बुद्धिमत्ता। उन्हें चाहिए कि Apple के सब फोन वापस अमेरिका में बनें — भले ही उनका मूल्य तीन लाख हो जाए और उनकी बिक्री शून्य। अमेरिका फर्स्ट की यह परिभाषा अमेरिका की कंपनियों को भी नहीं सुहाती।
अमेरिका की अर्थनीति या ट्रंप की “ईगो-नीति”?
ट्रंप की यह “ईगोइकोनॉमिक्स” वास्तव में एक नई आर्थिक विचारधारा है — जिसमें प्रत्येक निर्णय इस आधार पर लिया जाता है कि किस देश ने ट्रंप के अहंकार को ठेस पहुँचाई। अब भारत ने स्पष्ट कह दिया कि पाकिस्तान के साथ युद्धविराम में अमेरिका का कोई दखल नहीं था — तो ट्रंप महाशय का आत्मसम्मान हिल गया।
अरे भाई! यदि भारत अपने बलबूते शांति स्थापित कर ले, तो उसमें अपमान कैसा? किंतु नहीं — ट्रंप जी को नोबेल पुरस्कार की इच्छा है। और यदि भारत उनकी मध्यस्थता अस्वीकार करे, तो फिर भारत को “टैरिफ” की लाठी से पीटा जाएगा।
Apple की भारत यात्रा और ट्रंप की जलन
Apple अब भारत में iPhone बना रहा है — हज़ारों भारतीयों को रोज़गार दे रहा है, और वैश्विक उत्पादन में भारत की भूमिका को सशक्त बना रहा है। यह सब देख ट्रंप जी की आंखों में आँसू आ जाते हैं — दुःख के नहीं, जलन के।
कहीं ऐसा न हो कि भारत में बनी चीजें अमेरिका में बिकने लगें, और अमेरिकावासी यह कहने लगें — “मेड इन इंडिया इज बेटर देन मेड इन यूएसए!” यह कल्पना ही ट्रंप को “टैरिफ क्रांति” के लिए प्रेरित करती है।
भस्मासुर और ट्रंप: एक पुरातन और एक आधुनिक कथा
पौराणिक कथा है — भस्मासुर को वरदान मिला था कि वह जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा। यह सुनकर उसने भोलेनाथ पर ही हाथ उठाया, और अंततः अपने ही सिर पर हाथ रख बैठा। ट्रंप जी का व्यापारिक वरदान भी कुछ वैसा ही है — जहां वे जिस पर टैरिफ का हाथ रखते हैं, वह कंपनी अमेरिका छोड़ भारत आ जाती है।
अब यदि वे Apple पर टैरिफ लगाएंगे, तो Apple की लागत बढ़ेगी, फोन महंगे होंगे, ग्राहक भागेंगे और अंततः — Apple भी “Blackberry” की तरह इतिहास हो जाएगा।
भारत बोले: “भाई साहब, अब हम कमज़ोर नहीं”
भारत अब उस युग से आगे बढ़ चुका है जब वैश्विक शक्तियाँ डर दिखाकर अपनी बात मनवा लेती थीं। अब भारत कहता है — “हमारे श्रमिक कुशल हैं, हमारी नीतियाँ स्पष्ट हैं, हमारी सरकार सशक्त है — और सबसे बड़ी बात, हमारी नीयत साफ़ है।”
आप चाहें तो कुक को कुक करें, किंतु हम तो दुनिया को “Make in India” का स्वाद चखाएंगे।
उपसंहार: ट्रंप का टैरिफ और Apple’s तपस्या
कहते हैं, ज्ञान से ही अहंकार टूटता है। किंतु कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें ज्ञान भी तब आता है जब सब कुछ हाथ से निकल चुका होता है। ट्रंप जी को भी शायद वही दिन देखना पड़ेगा — जब टिम कुक उन्हें एक iPhone भेंट करेंगे, जिस पर लिखा होगा:
“Made in India, with love — and without fear.”