देश की थोक महंगाई दर जुलाई में घटकर तीन महीने के निचले स्तर 2.04 फीसद आ गई। खाद्य पदार्थों खासकर सब्जियों की कीमतों में नरमी इसकी प्रमुख वजह रही। बुधवार को जारी सरकारी आंकड़ों से यह जानकारी मिली। थोक मूल्य सूचकांक (WPI) आधारित मुद्रास्फीति में जुलाई में गिरावट आई है, जबकि जून तक लगातार चार महीने इसमें वृद्धि हुई थी। जून में 3.36 प्रतिशत थी। दूसरी ओर, आरबीआई को महंगाई दर 4 फीसदी पर बनाए रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है। अभी दोनों महंगाई इस दायरे से काफी नीचे है। आरबीआई ने अगस्त की मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर को लगातार नौवीं बार 6.5 प्रतिशत पर यथावत रखा था।
पिछले साल जुलाई में इसमें 1.23 प्रतिशत की गिरावट रही थी। वहीं, जुलाई में खाद्य महंगाई दर 3.45 प्रतिशत रही, जो जून में 10.87 प्रतिशत थी। इसकी मुख्य वजह सब्जियों, अनाज, दालों और प्याज की कीमतों में मासिक आधार पर गिरावट रही। सब्जियों की कीमतों में जुलाई में 8.93 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जबकि जून में इनमें 38.76 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने बताया कि जुलाई निर्मित उत्पाद समूह की मुद्रास्फीति की वार्षिक दर जून 2024 में 1.43 प्रतिशत से बढ़कर जुलाई 2024 में 1.58 प्रतिशत हो गई। ईंधन तथा बिजली की मुद्रास्फीति की वार्षिक दर बढ़कर 1.72 प्रतिशत हो गई, जो जून 2024 में 1.03 प्रतिशत थी।
आगे और नरमी के संकेत
इक्रा के वरिष्ठ अर्थशास्त्री राहुल अग्रवाल ने कहा कि थोक मूल्य सूचकांक में जुलाई में गिरावट इस महीने के खुदरा मुद्रास्फीति के आंकड़ों के अनुरूप रही। इस सप्ताह की शुरुआत में जारी आंकड़ों के अनुसार जुलाई में खुदरा मुद्रास्फीति पांच साल के निचले स्तर 3.54 प्रतिशत पर आ गई। भविष्य में हम उम्मीद करते हैं कि थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में निरंतर नरमी से उत्पादन स्तर की लागत कम होगी और देश में उपभोग मांग बढ़ेगी।”
आरबीआई के फैसले पर रहेंगी निगाहें
विशेषज्ञों का कहना है कि जुलाई माह में खुदरा और थोक महंगाई में नरमी आई है। थोक महंगाई में नरमी का असर आगे खुदरा मुद्रास्फीति पर भी दिखेगा। आरबीआई मौद्रिक नीति तैयार करते समय मुख्य रूप से खुदरा मुद्रास्फीति को ध्यान में रखता है। यदि अगस्त माह में भी नरमी का यह दौर जारी रहता है तो आरबीआई रेपो दर में कटौती का फैसला ले सकता है।
थोक महंगाई की चाल
जुलाई 2.04
जून 3.36
मई 2.61
अप्रैल 1.26
मार्च 0.26