जयपुर:राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में होने है लेकिन इस बार कांग्रेस नेतृत्व सरकार रिपीट के लिए सख्त दिखाई दे रहा है। राजस्थान में हर 5 साल बाद सरकार बदलने का ट्रेंड रहा है। एंटी इंकबेंसी रोकने के लिए कुछ विधायकों और मंत्रियों को ड्राॅप किया जा सकता है। जिसके तहत एक आधा दर्जन मंत्रियों और करीब एक दर्जन कांग्रेस विधायकों के टिकट पर संकट छाया हुआ है। सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए मंत्री और विधायक सुरक्षित सीट तलाशने करने के साथ ही जीत का फार्मूला ढूंढ रहे हैं। चर्चा है कि एंटी इकमबेंसी से बचने के लिए गहलोत और पायलट समर्थक मंत्रियों का टिकट कट सकता है या फिर दूसरी सीट पर शिफ्ट किया जा सकता है। पायलट समर्थक मंत्री विश्वेंद्र सिंह, मुरारी लाल मीना और रमेश मीना की सीट सत्ता विरोधी लहर में फंस सकती है। बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए मंत्री राजेंद्र गुढ़ा को भी इंटी इंकमबेंसी का डर सत्ता रहा है। राजेंद्र गुढ़ा ने तो यहां तक कह दिया कि हम पूरी तरह से आश्वस्त नहीं है कि बसपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों को कांग्रेस का टिकट मिलेगा। गुढ़ा के बयान से साफ जाहिर है कि कांग्रेस के सीटिंग विधायकों का टिकट खतरे में है।
पायलट समर्थक मंत्रियों के साथ-साथ गहलोत समर्थक माने जाने वाले लालचंद कटारिया, महेश जोशी और रघु शर्मा भी सीट एक्सचेंज कर सकते हैं। हालांकि गहलोत समर्थक विधायकों पर भी इंटी एंकमबेंसी का खतरा है। कृषि मंत्री लाल चंद कटारिया लेकर चर्चा है कि वह झोटवाड़ा के स्थान पर अपनी पुरानी सीट आमेर का रूख कर सकते हैं। जलदाय मंत्री महेश जोशी अपनी पुरानी विधानसभा सीट किशनपोल से चुनाव लड़ने का मानस बना रहे हैं। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और गुजरात कांग्रेस प्रभारी रघु शर्मा को लेकर कहा जा रहा है कि वह केकड़ी की जगह सुरक्षित सीट तलाश रहे हैं। गहलोत समर्थक विधायक अमीन कागजी भी अपनी विधानसभा सीट किशनपोल से ही चुनाव लड़ना चाहते हैं। पायलट समर्थक विधायक हरीश मीणा देवली उनियारा की जगह सवाईमाधोपुर की बामनवास विधानसभा से चुनाव लड़ने के इच्छुक बताए जा रहे हैं। पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह के बारे में चर्चा है कि वे इस बार डीग कुम्हेर के बजाय नदबई से चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं। मंत्री मुरारी लाल मीना दौसा की जगह महुआ विधानसभा से चुनाव लड़ने का मानस बना रहे हैं।
राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए डेढ़ साल का समय बचा है। पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती सरकार रिपीट करने की है। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस बार सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए नए चेहरों को मौका दिया जा सकता है। विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस को एक दर्जन सीटों पर नए चेहरों से चुनौती मिली थी। वे किनारे पर आकर चुनाव हार गए। बताया जा रहा है कि पार्टी की नजर बहुत कम मतों से हारने प्रत्याशियों पर है। पार्टी उन्हें कांग्रेस का उम्मीदवार बना सकती है। एंटी इंकबेंसी रोकने के लिए कुछ विधायकों और मंत्रियों को ड्राॅप किया जा सकता है।