मिलकपुर, भिवानी:अपने पावन संदेशों से जन मानस को सदाचार की राह दिखाने वाले, परमार्थ हेतु अपना जीवन समर्पित कर 52 हजार किलोमीटर से भी अधिक की पदयात्रा करने वाले शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी वर्तमान में हरियाणा राज्य में अपने प्रवचनों द्वारा आध्यात्मिक गंगा बहा रहे है। आज प्रातः आचार्यश्री ने बवानी खेड़ा से मंगल विहार किया। अपने गुरु का प्रवास पाकर श्रद्धालु जन कृतज्ञता के भावों की अनुभूति कर रहे थे। विहार मार्ग के दौरान दूर तक दृष्टिगत होते लहलहाते खेत, छोटी नहरे तथा सड़क के दोनों ओर विशाल वृक्ष राशि नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। लगभग 11 किमी विहार कर आचार्यश्री मिलकपुर के आनन्द स्कूल फॉर एक्सीलेंस में प्रवास हेतु पधारे। स्कूल से जुड़े प्रबंधको एवं शिक्षकों ने शांतिदूत का भावभीना स्वागत किया। कल आचार्यश्री का हांसी में मंगल पदार्पण होगा।
आनंद स्कूल फार एक्सीलेंस के प्रांगण में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित विद्यार्थियों व श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि ध्यान एक शब्द है। धार्मिक साहित्यों में ध्यान शब्द पर प्रकाश डाला गया है। आम बोलचाल की भाषा में भी ध्यान शब्द का बहुधा प्रयोग होता है। साधना का एक प्रयोेग है ध्यान। ध्यान अर्थात् एकाग्र चिंतन करना। आदमी का चिंतन बिखर जाता है। वह जब कभी कुछ सोचना प्रारम्भ करता है तो विभिन्न बिन्दुओं, वस्तुओं आदि पर मन भटकता रहता है। एकाग्रतायुक्त चिंतन ही ध्यान है। एक आलम्बन, एक केन्द्र पर नियोजित होना ध्यान होता है।
आध्यात्मिक जगत में ध्यान की बहुत महिमा बताई गई है। शरीर में जो स्थान सिर का होता है, वृक्ष में जो स्थान मूल का होता है, उसी प्रकार अध्यात्म में ध्यान का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए एकाग्रता बहुत आवश्यक होती है। आदमी को एकाग्रचित्त होने का प्रयास करना चाहिए। विद्यार्थियों को भी यह देखना चाहिए कि उनका मन पढ़ाई में कितना एकाग्र होता है। ध्यान निर्मल भी हो सकता है और ध्यान मलीनता से युक्त भी हो सकता है। राग-द्वेष से युक्त ध्यान मलीन ध्यान है और राग-द्वेष से मुक्त ध्यान निमर्ल ध्यान होता है। विद्यार्थियों का चिंतन निर्मल बने, उनकी एकाग्रता का विकास हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। विद्यार्थियों को जो यह समय प्राप्त है वह विद्या अर्जन का समय है। उसे विद्यार्जन में लगाने का प्रयास करना चाहिए। विद्या संस्थानों में विभिन्न विषयों के साथ-साथ योग, ध्यान, आध्यात्मिक चर्चा व धर्म आदि आध्यात्मिक शिक्षा भी प्राप्त होती रहे। शिक्षा के साथ-साथ अच्छे संस्कारों का प्रार्दुभाव हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। इसके माध्यम से विद्यार्थियें का ज्ञान, व्यवहार और आचरण को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए।
प्रवचन कार्यक्रम के दौरान आचार्यश्री ने उपस्थित विद्यार्थियों को एकाग्र होने के लिए महाप्राण ध्वनि का भी प्रयोग कराया। आचार्यश्री के आह्वान पर विद्यार्थियांे ने नशामुक्ति (विशेष रूप से शराब) से मुक्त रहने का संकल्प कराया। अपने स्कूल में आगमन से हर्षित विद्यालय के प्रबन्धक श्री आनंद यादव ने कहा कि आज परम सौभाग्य की बात है कि मेरे विद्यालय प्रांगण में आचार्यश्री का मंगल पदार्पण हुआ है। मैं आपका बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं। आपके दर्शन कर मुझे साक्षात् भगवान के दर्शन हो गए। इस दौरान श्री लाजपतराय जैन एडवोकेट तथा विद्यालय की प्रिंसिपल श्रीमती रेनू अनेजा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। विद्यालय के विद्यार्थियों ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।