नई दिल्ली:भारत-चीन के बीच वर्ष 2020 में हुए टकराव के बाद चीन ने एलएसी के निकटवर्ती क्षेत्रों में अपनी तरफ आधा दर्जन नए एयरफील्ड तैयार कर लिए हैं। जबकि, पहले भी उसके पास एक दर्जन नए एयरफील्ड सीमावर्ती क्षेत्रों के निकट मौजूद थे। चीन की इस चुनौती से मुकाबले के लिए भारत की ओर से भी सीमाई क्षेत्रों में नए एयरफील्ड विकसित किए जा रहे हैं।
वायुसेना के सूत्रों ने हाल में संसद की एक समिति के समक्ष में दिए गए बयान का हवाला देते हुए कहा कि एलएसी के निकट चीन के पहले से मौजूद एयरफील्ड और पिछले एक-डेढ़ वर्षों के दौरान बने एयरफील्ड की पहचान की गई है।
दरअसल, जिस तेजी से चीन वहां अपनी वायुसेना के नेटवर्क का विस्तार कर रहा है, वह भारत के लिए चिंतापूर्ण है। ऐसे में इस चुनौती से निपटने के लिए भारत ने भी उपाय शुरू कर दिए हैं। सीमा से कुछ दूर के इलाकों में चीन की तर्ज पर नए एयरफील्ड बनाने, पुराने एयरफील्ड को अपग्रेड करने और नागरिक हवाईअड्डों के इस्तेमाल की सभी संभावनाओं पर कार्य किया जा रहा है। हालांकि, वायुसेना की तरफ से नए एयरफील्ड की संख्या का खुलासा नहीं किया गया है।
वायुसेना की रणनीति एयरफील्ड विकसित कर चीनी सेना को क्षति पहुंचाने की क्षमता हासिल करने की होगी। इसमें चीन के प्रहार को बिना ज्यादा क्षति के सहना और जवाबी हमले करना शामिल है। इसके लिए सीमाई क्षेत्रों से दूर एयरफील्ड में मौजूद बलों का इस्तेमाल किया जाएगा।
24 एयरफील्ड आधुनिक सुविधाओं से लैस होंगे
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि वायुसेना की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए 24 एयरफील्ड को अक्तूबर, 2024 तक आधुनिक बनाने की योजना पहले से ही चल रही है। इनमें से ज्यादातर एयरफील्ड चीन और पाकिस्तान की सीमाओं के निकट हैं। नौसेना के नौ और तटरक्षक बल व एविएशन रिसर्च सेंटर के दो-दो एयरफील्ड को भी विकसित कर अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस किया जा रहा है।
चीन के पास सीमा के निकट 18-20 एयरफील्ड
सूत्रों की मानें तो भारत-चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा के नजदीकी क्षेत्रों में चीनी सेना के पास 18-20 संचालन योग्य एयरफील्ड हैं। कुछ एयरफील्ड एकदम नए बनाए गए हैं तो कुछ को विकसित किया गया है। इसके अलावा चीन ने कुछ नागरिक हवाईअड्डों का वायुसेना के लिए भी इस्तेमाल शुरू किया गया है। वहीं, भारत के पास यह संख्या अभी कम है, लेकिन कोशिश यह है कि इसे चीन के बराबर या उससे ज्यादा किया जाए।
सरकार का फोकस खासतौर पर पूर्वोत्तर के क्षेत्र पर है, जहां छोटे एयरफील्ड को विस्तार देकर उन्हें लड़ाकू विमानों के इस्तेमाल योग्य बनाना है। इन एयरफील्ड को न सिर्फ विमानों के उड़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, बल्कि उन्हें सेना और सैन्य उपकरणों के लिए बैकअप के रूप में भी इस्तेमाल किया जाएगा।
टकराव की संभावना पूरी तरह खत्म नहीं
बता दें कि मई, 2020 में दोनों देशों की सेनाओं के बीच गलवान घाटी में संघर्ष हुआ था। तब से कई स्थानों पर अभी भी दोनों देशों की सेनाएं मोर्चे पर डटी हुई हैं। हालांकि, पेंगोग समेत कई इलाकों से सेनाएं पीछे हट चुकी हैं। मगर, सैन्य कमांडर स्तर की 15 दौर की वार्ताओं के बावजूद टकराव पूरी तरह से खत्म नहीं हो पा रहा है।