नई दिल्ली:दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि अगर किसी महिला वकील की नियुक्ति नियमित कर्मचारी की जगह ‘एक पेशेवर’ के रूप में की गई है, तो ऐसे में वह मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के तहत मिलने वाले मैटरनिटी के लाभ पाने की हकदार नहीं होगी। कोर्ट ने यह फैसला दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (DSLSA) के साथ एक प्रोफेशनल के रूप में जुड़ी वकील के केस की सुनवाई करते हुए दिया।
न्यायमूर्ति वी कामेश्वर राव और न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी की खंडपीठ ने हाईकोर्ट की एकल-न्यायाधीश पीठ के जुलाई 2023 के उस आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें कोर्ट ने DSLSA को गर्भवती महिला वकील को मातृत्व लाभ अधिनियम के अनुसार मिलने वाले सभी मेडिकल, आर्थिक और अन्य लाभ जारी करने का निर्देश दिया था।
यह महिला एक पैनल वकील के रूप में दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (DSLSA) के साथ जुड़ी हुई थी और उसे एक प्रोफेशनल वकील के रूप में किशोर न्याय बोर्ड-1 में कानूनी सेवा अधिवक्ता (LAS) के रूप में नियुक्त किया गया था। महिला ने नियमित महिला कर्मचारियों की तरह अपने लिए भी मातृत्व लाभ की मांग की थी।
एकल न्यायाधीश के आदेश को रद्द करते हुए, पीठ ने कहा कि पैनल वकील के रूप में महिला की नियुक्ति को 1961 के अधिनियम के तहत लाभ का दावा करने के लिए ‘मजदूरी के लिए रोजगार’ की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। अदालत ने कहा कि किशोर न्याय बोर्डों के समक्ष कानूनी सेवाएं प्रदान करने के लिए योग्य उम्मीदवारों को तीन साल की अवधि के लिए लीगल सर्विसेस एडवोकेट्स (LSA) के रूप में DSLSA के साथ नियुक्त या सूचीबद्ध किया जाता है।
कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी की नियुक्ति किसी भी अन्य LSA की तरह निश्चित शर्तों के साथ नियमित नहीं है। इसी वजह से किसी भी नियमित कर्मचारी को मिलने वाली छुट्टियां LSA को नहीं दी जाती हैं। LSA की भागीदारी एक पेशेवर के रूप में दैनिक आधार पर की गई है। इसके अलावा, पीठ ने यह भी कहा कि DSLSA के नोटिस में लिखे निर्धारित नियमों और शर्तों को एक बार स्वेच्छा से स्वीकार करने के बाद महिला उनके नियमों को मानने के लिए बाध्य है।
फैसला देते हुए पीठ ने यह भी कहा कि मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत ‘रोजगार’ और ‘मजदूरी’ शब्दों की जो व्याख्या एकल न्यायाधीश द्वारा दी गई है, अगर हम उसे रहने भी दें तो इसका मतलब यह होगा कि वकील जैसे पेशेवरों को रखने वाली संस्था, उसके यहां पेशेवर रूप से जुड़े कार्यरत प्रत्येक व्यक्ति को मातृत्व लाभ देने के लिए बाध्य होगी। इस तरह की व्याख्या कानूनी रूप से पूरी तरह से गलत है और इसके गंभीर परिणाम होंगे।