गोपाष्टमी का त्योहार कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। आज गोपाष्टमी है। मथुरा, वृंदावन और ब्रज क्षेत्रों में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। देखा जाए तो कृष्ण ने ही गाय को सबसे अधिक प्रेम और मान्यता दिलाई है। वे तो खुद ही गोविंद हो गए। इस दिन गाय और बछड़ों की पूजा की जाती है। ऐसी कथा है कि जब कृष्ण की आयु छह साल की हुई तो उन्होंने अपनी मैया यशोदा से कहा, ‘मैया मैं बड़ा हो गया हूं। अब बछड़े नहीं, गाय चराऊंगा।’ मैया ने अनुमति के लिए पिता नंद के पास भेज दिया। कृष्ण ने नंद के सामने भी यही कहा।
नंद बाबा गैया चराने के मुहूर्त के लिए ऋषि शांडिल्य के पास पहुंचे। ऋषि ने नंद की बात सुनकर कहा कि आज ही मुहूर्त हैं। उस दिन गोपाष्टमी थी। माता ने कान्हा को मोर मुकुट लगाया, पैरों में घुंघरू पहनाए। सुंदर-सी पादुका पहनाईं। तब कृष्ण गाय को चराने ले गए। एक अन्य कथा अनुसार इस दिन कृष्ण ने इंद्र देव का घमंड चूर-चूर किया था। गोवर्धन पर्वत के नीचे गायों और बृजवासियों को मूसलाधार बरसात से बचाकर।
इस दिन गाय को गुड़, हरा चारा, फल आदि खिलाकर प्रदक्षिणा जरूर करें। कृष्ण को माखन-मिश्री का भोग लगाएं। सुबह गाय को साफ पानी से स्नान करवाने के बाद रोली और चंदन से उन्हें तिलक लगाना चाहिए। नए वस्त्र पहनाने चाहिए। साथ ही पुष्प,अक्षत आदि से उनकी पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद गाय चरानेवालों को दान-दक्षिणा देकर उनका सम्मान और पूजन करें। पूजा के लिए बनाया हुआ प्रसाद गाय को खिलाएं और उनकी परिक्रमा करें। साथ ही उनके साथ थोड़ी दूर तक चलें। शाम को गायों के लौटने के बाद फिर उनका पूजन करें और गाय को चारा, मीठा आदि खिलाना चाहिए। उनके चरणों की धूल माथे पर लगानी चाहिए।