सुरेन्द्रनगर:जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ सौराष्ट्र क्षेत्र की यात्रा प्रारम्भ कर चुके हैं। सौराष्ट्र का पहला जिला सुरेन्द्रनगर वर्तमान में पूज्यचरणों से पावनता को प्राप्त हो रहा है। अनेक उपमाओं से विभूषित शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को प्रातःकाल बलडाना से गतिमान हुए। इस क्षेत्र में ठंड का थोड़ा असर भी दिखाई दे रहा था। मार्ग में अनेक लोगों को आचार्यश्री के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जन-जन पर आशीष वृष्टि करते हुए शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी बारह किलोमीटर का विहार कर वस्तडी गांव में स्थित प्राथमिकशाला में पधारे।
प्राथमिकशाला परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि गुस्से को मनुष्यों को शत्रु कहा जाता है। गुस्सा मानव जीवन में कहीं भी काम का नहीं होता है। जहां गुस्सा होता है, वहां अशांति व्याप्त हो जाती है। जो शांत होता है, जो गुस्सा नहीं करता, वह संत होते हैं। सामान्य आदमी को गुस्से से बचने का प्रयास करना चाहिए।
गुस्सा स्नेह को समाप्त करने वाला होता है। गुस्सा करने वाले को समाज में कोई स्थान नहीं देना चाहेगा। गुस्सा करने वाले को परिवार में भी कोई पसंद नहीं करता। कहीं गुस्सा आवश्यक भी हो सकता है। जैसे कोई शिक्षक किसी विद्यार्थी में सुधार के लिए कभी गुस्सा दिखाएं, कुछ दण्ड भी दें तो वह सार्थक हो सकता है। इनकी भावना द्वेष नहीं, बल्कि विद्यार्थी में सुधार लाने के लिए किया गया प्रयास हो सकता है। विद्यालय एक प्रकार का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। जहां ज्ञान का आदान-प्रदान, संस्कारों का आदान-प्रदान हो सकता है। जो शिक्षक होते हैं, उन पर तो विद्यार्थियों के व्यक्तित्व के निर्माण का बड़ा दायित्व होता है। वे ज्ञान और संस्कार देकर उन्हें संभाल लें तो उनका जीवन अच्छा हो सकता है।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने समुपस्थित विद्यार्थियों से प्रेरणास्पद प्रश्न किए तो विद्यार्थियों ने बालसुलभ उत्तर भी प्रदान किए। बच्चों ने आशीर्वाद के साथ मंगल प्रेरणा प्रदान की। प्राथमिकशाला के शिक्षक श्री नरेशभाई सोलंकी, ग्राम पंचायत सरपंच श्री घनश्याम सिंह गोहिल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी व आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। तेरापंथ कन्या मण्डल व तेरापंथ किशोर मण्डल ने पृथक्-पृथक् गीत को प्रस्तुति दी।