– ‘नचिकेता’ मुनि अनुशासन
इन समस्याओं को हम नक्सलवाद, उग्रवाद माओवाद या कोई भी नाम दे किंतु इनके आतंक से अप्रभावित कोई नहीं रह सकता
समाचार पत्रों में छपी एक खबर की छत्तीसगढ़ के बीजापुर व सुकमा जिले की सीमा पर मुठभेड़ में नक्सलियों ने सुरक्षा बलों के जवानों को घेरकर गोलियों से भून डाला। राकेट लांचर और आधुनिक हथियारों से हुए उस हमले में 22 जवान शहीद हो गये। ऐसी ही एक और घटना में नक्सलियों द्वारा घात लगाकर 76 सुरक्षाकर्मियों की हत्या की खबर ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। ऐसी अनेकानेक खबरों ने समय-समय पर सरकार एवं आम जनता तक को आतंकित कर दिया जिसमें लोकतंत्र के खिलाफ हिंसा को अपना हथियार मानने वाले कुछ गुटों ने नेताओं, सुरक्षाबलों या उनकी सहयोगी आम जनता की हत्या, अपहरण आदि को अपना मुख्य लक्ष्य बना लिया था। भारत के कई राज्यों में व्याप्त इन समस्याओं को हम नक्सलवाद, उग्रवाद माओवाद या कोई भी नाम दे किंतु इनके आतंक से अप्रभावित कोई नहीं रह सकता।
झारखंड, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, ओडिसा, असम आदि राज्यों में जहां यदाकदा ऐसी हिंसक गतिविधियों की हलचल सुनाई देती रहती है वहां अनेकों विषमताओं में भी प्रभावित हुए बिना दुरूह पदयात्रा कर अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण ने हिंसा के तिमिर में अहिंसा का एक नया आलोक प्रस्फुटित किया है। अपनी अहिंसा यात्रा में आचार्यश्री ने किसी एक वर्ग-समुदाय या खास तबके तक ही सीमित न रहकर अपितु आर्थिक, सामाजिक परिवेश में पिछड़े क्षेत्रों तक जाकर आम जनमानस में अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
असम का कार्बीएंगलोंग एक ऐसा क्षेत्र है जहां दिन में भी जाने से लोग भय खाते हैं उस क्षेत्र में कई दिन-रात का प्रवास कर आचार्यश्री ने स्थानीय जनता को प्रेम, भाईचारे का संदेश दिया। सन् 2016 में जब यात्रा के दौरान एक दिन सहसा एक व्यक्ति प्रवास स्थल परिसर में प्रविष्ट हुआ तो कइयों की नजरें उस ओर टिक गई। कई के कदम चेहरे से खूंखार रूप लिए उस व्यक्ति की ओर निषेध के लिए उठे परंतु एक संत के दरबार में हर प्राणी को आने का अधिकार है इस चिंतन और उत्सुकता ने उस व्यक्ति को आचार्य श्री के परिपार्श्व में पहुंचने दिया। आचार्यवर की शांत व स्थिर मुद्रा उसे अपनी ओर आकृष्ट कर रही थी। कक्ष में पहुंचकर उस आदिवासी ने ऊंचे स्वरों में कहा – ‘गुरु जी मैंने अपने जीवन में सौ से अधिक लोगों को मौत के घाट उतारा है, पर आज मैं आपके सामने सौगंध लेता हूं अब किसी मनुष्य की हत्या नहीं करूंगा।’ कक्ष में उपस्थित संतगण सहित कार्यकर्ता आश्चर्य से उस व्यक्ति की ओर देख रहे थे। आचार्य श्री से आशीर्वाद ग्रहण कर वह व्यक्ति उसी दिशा में लौट गया जहां से आया था।
यात्रा में ऐसे अनेकों प्रसंग आए जब कभी विहार में तो कभी प्रवास स्थल पर स्थानीय आदिवासी, ग्रामीण आचार्यश्री के दर्शनार्थ आते और अहिंसा यात्रा से प्रभावित होकर आजीवन हिंसा, मांसाहार, नशे जैसी बुरी लतों का परित्याग कर देते। शांतिदूत के पवित्र आभामंडल से प्रभावित हृदय परिवर्तन के ऐसे न जाने कितने चमत्कारों की कहानियां अहिंसा यात्रा की महत्ता को बयां कर रही है।
त्रि उद्देश्यीय यात्रा के सद्भावना, नैतिकता एवं नशा मुक्ति जैसे सूत्र समाज व देश के विकास के लिए हर रूप से आवश्यक है। जब तक देश के प्रत्येक नागरिक के भीतर इन गुणों का किसी भी रूप में प्रस्फुटन नहीं होगा तब तक एक महान समाज एक महान राष्ट्र के रूप में हम आगे नहीं बढ़ सकेंगे।
भारत के 20 राज्यों की इस यात्रा के दौरान संत शिरोमणि आचार्य श्री महाश्रमण ने मानों हिंसा की नब्ज को पकड़ा और आमतौर से मुख्यधारा से कटे रहने वाले समुदायों के बीच जाकर जनसाधारण के चारित्रिक विकास हेतु महनीय कार्य किया। हाल ही में छत्तीसगढ़ राज्य की यात्रा इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। एक ओर जहां प्राकृतिक रूप से समृद्ध इस प्रदेश में लौह, अयस्क, कोयला आदि की बड़ी-बड़ी औद्योगिक इकाइयां है वहीं क्षेत्रीय दृष्टि से बहुतायात जंगलों में ग्रामीण, आदिवासियों में नक्सली गतिविधियां संचालित होती रहती है। सघन वनों में इस आधुनिक समय में भी बिजली, मोबाइल नेटवर्क आदि तक उपलब्ध नहीं है ऐसे में वहां हुई अहिंसा यात्रा ने लोगों के दिलों में एक प्रश्न पैदा किया कि बिना हथियार उठाए भी कोई कार्य संभव है क्या ? आचार्यश्री के संदेशों से लोगों को हिंसा से परे भी एक नई दुनिया दिखाई दी।
नक्सलियों की यह सोच की हिंसा के द्वारा ही अपनी बात मनवाई जा सकती है, समाज में बदलाव लाया जा सकता है। पर उनको अपनी सोच के विपरीत आचार्य महाश्रमण जी की अहिंसा यात्रा में नजर आया। उन्होंने देखा कि जो बात बल प्रयोग से नहीं मनवाई जा सकती उसको हृदय परिवर्तन के द्वारा घटित किया जा सकता है। इस कथन की सच्चाई को आचार्यश्री ने शत-प्रतिशत सार्थक कर दिखाया है।
आज भारत में जगह-जगह कई रूपों में हिंसा, दंगा-फसाद, साम्प्रदायिक वैमनस्य की समस्याएं दिखाई देती है। ऐसा नहीं है कि यह अहिंसा यात्रा हिंसक गतिविधियों पर पूर्ण विराम ही लगा देगी, किन्तु यह निश्चित ही कहा जा सकता है कि 18,000 किलोमीटर लंबी इस पदयात्रा ने लाखों-लाखों मानवों के भीतर मानवीयता और अहिंसा की पावन ज्योत जलाई है।
देश की राजधानी दिल्ली में गत 27 मार्च 2022 को समाप्त हुई सप्तवर्षीय इस अहिंसा यात्रा की गूंज आगे आने वाले कई दशकों तक हमें सुनाई देने वाली है। एक महासंत द्वारा एक महान लक्ष्य के साथ की गयी यह यात्रा औपचारिक रूप से भले समाप्त हो गई हो किंतु हिंसा से आवेष्ठित विश्व क्षितिज पर अहिंसा की उजली किरण सदा अपना प्रकाश फैलाती रहेगी।