मध्य पूर्व जिसे अंग्रेजी में मिडिल-ईस्ट कहते हैं, यह एक ऐसा क्षेत्र है जो सदियों से राजनीतिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक कारणों से संघर्षों का केंद्र रहा है। इतिहास में सबसे ज्यादा हिंसा देखने वाले भू-राजनीतिक क्षेत्रों में से एक पश्चिम एशिया (मध्य पूर्व) है। यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही संघर्षों और युद्धों का केंद्र रहा है, जिसमें कई प्रमुख सभ्यताओं, साम्राज्यों और धार्मिक समूहों की टकराहटें शामिल हैं। हालांकि यहां की धरती पर कई प्रमुख सभ्यताओं का उदय हुआ, जिन्होंने विज्ञान, दर्शन, और साहित्य के क्षेत्रों में अमूल्य योगदान दिया, लेकिन साथ ही यह क्षेत्र लंबे समय तक युद्धों और संघर्षों से भी जूझता रहा है। पश्चिम एशिया में हिंसा का प्रमुख कारण इसके भौगोलिक महत्व, धार्मिक विविधता, और प्राकृतिक संसाधनों, विशेषकर तेल, पर नियंत्रण को लेकर रहा है। अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र जहां ऐतिहासिक रूप से बहुत हिंसा हुई है, उनमें यूरोप के बाल्कन क्षेत्र (विशेषकर प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान), अफ्रीका के कुछ हिस्से, जैसे रवांडा और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, और दक्षिण एशिया का क्षेत्र शामिल हैं। आइए जानते हैं, कैसे मध्य पूर्व में युद्धों का सिलसिला शुरू हुआ और आज तक किन प्रमुख घटनाओं ने इस क्षेत्र को प्रभावित किया है।
प्राचीन काल का संघर्ष
मध्य पूर्व में युद्धों की शुरुआत का इतिहास प्राचीन काल तक जाता है। यहां सबसे पहले सुमेरियन, अक्कादियन, बेबिलोनियन, और अश्शूर साम्राज्यों के बीच सत्ता संघर्ष हुआ। ये साम्राज्य मेसोपोटामिया क्षेत्र (आज के इराक) में स्थित थे, जिसे “सभ्यता की जननी” कहा जाता है। प्राचीन बेबिलोनिया और अश्शूर साम्राज्य ने कई बार एक दूसरे के खिलाफ आक्रमण किए। इसके बाद फारसी साम्राज्य (आधुनिक ईरान) का उदय हुआ, जिसने पूरे मध्य पूर्व में अपना प्रभुत्व जमाया।
इस्लाम का उदय और अरब साम्राज्य
7वीं शताब्दी में इस्लाम के उदय ने मध्य पूर्व के इतिहास में एक नया मोड़ लाया। पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं के बाद, अरबों ने एक विशाल इस्लामी साम्राज्य की स्थापना की। इस्लामी साम्राज्य की शक्ति ने फारस, रोम और बैजंटाइन साम्राज्यों को चुनौती दी। इस्लामिक खलीफाओं के अधीन युद्धों का दौर शुरू हुआ, जिसने पूरे क्षेत्र को प्रभावित किया। इसी दौर में ईसाई और मुस्लिम सेनाओं के बीच क्रूसेड युद्ध हुए, जो कि धर्म और क्षेत्रीय वर्चस्व को लेकर थे। इन युद्धों में कई लाख लोग मारे गए थे।
क्रूसेड युद्ध (Crusades) मध्ययुगीन काल में यूरोपीय ईसाई शक्तियों और मुस्लिम सेनाओं के बीच लड़े गए धार्मिक युद्ध थे, जो मुख्य रूप से 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच हुए। इन युद्धों का उद्देश्य पवित्र भूमि, विशेषकर यरूशलेम, पर नियंत्रण प्राप्त करना था, जो उस समय मुस्लिम शासकों के अधीन था। पहला क्रूसेड 1095 ईस्वी में पोप अर्बन द्वितीय के आह्वान पर शुरू हुआ और इसे पवित्र भूमि को मुस्लिमों से “मुक्त” कराने के लिए धार्मिक कर्तव्य के रूप में देखा गया। कुल मिलाकर, क्रूसेड युद्धों की कई लहरें चलीं, लेकिन ईसाइयों को पवित्र भूमि पर स्थायी नियंत्रण प्राप्त करने में सफलता नहीं मिली। इन युद्धों का धार्मिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव गहरा था, और उन्होंने यूरोप व पश्चिम एशिया के इतिहास को बहुत प्रभावित किया।
आधुनिक युग और प्रथम विश्व युद्ध
20वीं शताब्दी में, प्रथम विश्व युद्ध के बाद, ओटोमन साम्राज्य का पतन हुआ, जो कि कई शताब्दियों से मध्य पूर्व पर शासन कर रहा था। ब्रिटेन और फ्रांस ने ओटोमन साम्राज्य के पतन के बाद साइक्स-पिकॉट समझौते के तहत इस क्षेत्र को विभाजित किया, जिससे नए-नए राष्ट्रों का निर्माण हुआ, जैसे इराक, सीरिया, और जॉर्डन। इस विभाजन के कारण क्षेत्र में लंबे समय तक राजनीतिक अस्थिरता बनी रही।
इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष
1948 में, संयुक्त राष्ट्र द्वारा इजरायल देश की स्थापना ने मध्य पूर्व में संघर्षों को और जटिल बना दिया। इजरायल और अरब देशों के बीच कई युद्ध हुए, जैसे कि 1948 का अरब-इजरायल युद्ध, 1967 का छह-दिवसीय युद्ध, और 1973 का योम किप्पुर युद्ध। आज भी इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष जारी है, जो मुख्यतः क्षेत्रीय विवादों और धार्मिक असहमति से प्रेरित है।
ईरान-इराक युद्ध और खाड़ी युद्ध
1980-1988 के बीच ईरान और इराक के बीच एक लंबा और विनाशकारी युद्ध लड़ा गया, जिसे ईरान-इराक युद्ध के नाम से जाना जाता है। इसके बाद 1990 में इराक ने कुवैत पर आक्रमण किया, जिसके परिणामस्वरूप खाड़ी युद्ध (1990-1991) छिड़ गया। अमेरिका और उसके सहयोगियों ने इराकी सेनाओं को कुवैत से बाहर कर दिया, लेकिन यह संघर्ष मध्य पूर्व में शक्ति संतुलन को प्रभावित करता रहा।
21वीं शताब्दी: आतंकवाद और नागरिक युद्ध
2001 में अमेरिका पर हुए 9/11 के आतंकी हमले के बाद, मध्य पूर्व में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध शुरू हुआ। अमेरिका ने अफगानिस्तान और इराक पर आक्रमण किया। 2003 में इराक में सद्दाम हुसैन की सत्ता को गिराया गया, लेकिन इसके बाद इराक में आतंकवादी गुटों का उदय हुआ, विशेष रूप से इस्लामिक स्टेट (ISIS) का। इराक और सीरिया में ISIS के बढ़ते प्रभाव ने क्षेत्र में नई तरह की चुनौतियां पैदा कीं।
सीरियाई गृह युद्ध
2011 में अरब स्प्रिंग के रूप में शुरू हुए जन आंदोलनों ने सीरिया को गृह युद्ध की ओर धकेल दिया। यह संघर्ष जल्द ही क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों का युद्ध बन गया, जिसमें रूस, अमेरिका, ईरान, और सऊदी अरब ने अपने-अपने पक्षों का समर्थन किया। इस युद्ध ने लाखों लोगों को विस्थापित किया और पूरे मध्य पूर्व में मानवीय संकट को जन्म दिया।
यमन का संघर्ष
यमन में 2015 से चल रहा गृह युद्ध भी एक प्रमुख संघर्ष है, जिसमें हूथी विद्रोहियों और सरकारी सेनाओं के बीच लड़ाई चल रही है। सऊदी अरब के नेतृत्व में गठबंधन सेना इस युद्ध में हस्तक्षेप कर रही है, जबकि ईरान हूथी विद्रोहियों का समर्थन कर रहा है। इस संघर्ष ने यमन को एक मानवीय संकट के कगार पर पहुंचा दिया है।
वर्तमान स्थिति
आज मध्य पूर्व में कई युद्ध और संघर्ष जारी हैं। सीरिया, यमन, इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष, और इराक में आतंकवाद की समस्या जैसे मुद्दे अभी भी वैश्विक चिंताओं का विषय बने हुए हैं। इसके अलावा, क्षेत्रीय शक्तियों के बीच शक्ति संघर्ष और विदेशी हस्तक्षेप इस क्षेत्र में स्थिरता लाने के प्रयासों को कमजोर कर रहे हैं।
किन वजहों से जल रही हिंसा की आग?
मध्य पूर्व में युद्धों और संघर्षों की कई प्रमुख वजहें रही हैं। इन कारणों को ऐतिहासिक, राजनीतिक, धार्मिक, और सामाजिक दृष्टिकोण से समझा जा सकता है।
1. धार्मिक विभाजन
मध्य पूर्व में इस्लाम के दो मुख्य संप्रदाय – सुन्नी और शिया – के बीच लंबे समय से टकराव चल रहा है। यह विभाजन 7वीं शताब्दी में हुआ था और आज भी कई देशों में संघर्ष की जड़ बना हुआ है, जैसे कि ईरान और सऊदी अरब। दोनों संप्रदायों के बीच सत्ता और प्रभाव का संघर्ष क्षेत्रीय तनाव को बढ़ाता है।
2. तेल और प्राकृतिक संसाधनों का नियंत्रण
मध्य पूर्व में दुनिया के सबसे बड़े तेल भंडार पाए जाते हैं, और इस कारण से यहां पर भू-राजनीतिक संघर्ष अक्सर देखने को मिला है। कई देश, विशेष रूप से पश्चिमी ताकतें (अमेरिका, ब्रिटेन), इस क्षेत्र के तेल पर नियंत्रण बनाए रखना चाहती हैं। इराक पर 2003 में अमेरिका का आक्रमण भी काफी हद तक तेल के कारण हुआ था।
3. इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष
1948 में इजरायल की स्थापना के बाद से अरब देशों और इजरायल के बीच विवाद जारी है। यह विवाद मुख्य रूप से भूमि के बंटवारे और फिलिस्तीनियों के अधिकारों को लेकर है। इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष आज भी दुनिया के सबसे पुराने और जटिल मुद्दों में से एक है, जो मध्य पूर्व में अस्थिरता की एक बड़ी वजह है।
4. औपनिवेशिक विरासत और सीमाओं का बंटवारा
प्रथम विश्व युद्ध के बाद, जब ओटोमन साम्राज्य का पतन हुआ, तो ब्रिटेन और फ्रांस ने साइक्स-पिकॉट समझौते के तहत मध्य पूर्व को अपने हिसाब से विभाजित कर दिया। इस प्रक्रिया में जो सीमाएं खींची गईं, वे क्षेत्रीय समुदायों और जनजातियों के बीच विभाजन का कारण बनीं। इसके परिणामस्वरूप, कई देशों में आंतरिक संघर्ष और विद्रोह हुए। साइक्स-पिकॉट समझौता, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन और फ्रांस के बीच हुआ एक गुप्त समझौता था। इस समझौते के जरिए, ओटोमन साम्राज्य के अरब प्रांतों को ब्रिटेन और फ्रांस के नियंत्रण में बांटा गया था। इस समझौते को एशिया माइनर समझौता भी कहा जाता है। इस समझौते पर ब्रिटेन के सर मार्क साइक्स और फ्रांस के फ्रांस्वा जॉर्जेस पिकोट ने बातचीत की थी। इस समझौते में रूस की भी सहमति थी।
5. विदेशी हस्तक्षेप
अमेरिका, रूस, और अन्य वैश्विक शक्तियों का मध्य पूर्व में लगातार हस्तक्षेप भी संघर्षों को बढ़ाने वाली एक प्रमुख वजह है। उदाहरण के लिए, अफगानिस्तान, इराक, और सीरिया में पश्चिमी देशों की सैन्य कार्रवाई ने इन देशों को राजनीतिक अस्थिरता और आतंकवाद की चपेट में ला दिया।
6. आतंकवाद और चरमपंथ
मध्य पूर्व में आतंकवादी संगठनों का उदय भी संघर्षों का एक प्रमुख कारण रहा है। अल-कायदा, इस्लामिक स्टेट (ISIS), और अन्य आतंकवादी गुटों ने क्षेत्र में हिंसा और आतंक फैलाया। इन गुटों के कारण कई देशों में आंतरिक युद्ध छिड़ा और नागरिकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
7. राजनीतिक अस्थिरता और तानाशाही
मध्य पूर्व के कई देशों में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल रहा है। तानाशाही शासन और लोकतांत्रिक अधिकारों की कमी के कारण जनता में असंतोष बढ़ता गया, जिसने विद्रोह और गृह युद्धों को जन्म दिया। अरब स्प्रिंग इसका एक प्रमुख उदाहरण है, जिसमें कई देशों की जनता ने अपने शासकों के खिलाफ विद्रोह किया।
8. सांस्कृतिक और जातीय विभाजन
मध्य पूर्व में सांस्कृतिक और जातीय विविधता भी संघर्ष का कारण बनी है। कुर्द, अरब, तुर्क, फारसी, और अन्य जातीय समूहों के बीच लंबे समय से वर्चस्व की लड़ाई चल रही है। यह विशेष रूप से इराक, सीरिया, और तुर्की में देखने को मिलता है, जहां कुर्दों ने अपनी स्वायत्तता की मांग की है।
9. अंतर्राष्ट्रीय शक्ति संघर्ष
मध्य पूर्व में अक्सर अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों के बीच सत्ता संघर्ष होता रहा है। शीत युद्ध के समय सोवियत संघ और अमेरिका ने अपने-अपने गुटों का समर्थन किया। आज भी अमेरिका और रूस के बीच क्षेत्रीय वर्चस्व को लेकर टकराव जारी है, जो सीरिया जैसे देशों में संघर्ष को बढ़ावा देता है।
मध्य पूर्व में युद्धों का इतिहास बेहद पुराना है और यह क्षेत्र आज भी संघर्षों से उभर नहीं पाया है। राजनीतिक, धार्मिक, और सामाजिक कारणों से यह क्षेत्र बार-बार हिंसा और अस्थिरता का शिकार होता रहा है।