नई दिल्ली: मसूद अजहर जैसे खूंखार आतंकी को संयुक्त राष्ट्र में बचाने वाले चीन ने अफगानिस्तान में आतंकवाद पर अलग राह पकड़ी है। तब भारत, अमेरिका समेत दुनियाभर के देश अजहर पर प्रतिबंध लगाना चाहते थे लेकिन चीन ने ऐन वक्त पर वीटो लगा दिया था। लेकिन इस बार चीन भारत के साथ खड़ा दिखा। जी हां, दुशांबे में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की हुई चौथी क्षेत्रीय सुरक्षा बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में भारत के साथ चीन, रूस, ईरान और 4 मध्य एशियाई देशों (कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, उजबेकिस्तान और ताजिकिस्तान) ने आतंकवाद की कड़े शब्दों में निंदा की है। महत्वपूर्ण यह है कि चीन-भारत ने मिलकर अफगानिस्तान और क्षेत्र में आतंकी शिविरों को खत्म करने का आह्वान किया है। चीन का यह रुख काफी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि जब बात भारत और पाकिस्तान की आती है तो वह पाक में पल रहे आतंकियों की ढाल के तौर पर बचाने खड़ा हो जाता है। अगर अब वह क्षेत्र में आतंकी कैंपों को नष्ट करने की बात कर रहा है तो एक संदेश यह भी जाता है कि क्या चीन-पाक कॉरिडोर के लिए पैदा हुए आतंकी खतरे से उसका आतंकवाद पर नजरिया बदला है। हालांकि ड्रैगन के एक कदम से भरोसा नहीं किया जा सकता है। यहां भी आतंक के खिलाफ बोलने की उसकी अपनी बड़ी वजह है।
महत्वपूर्ण यह है कि अमेरिका या किसी अन्य पश्चिमी देश का जिक्र न करते हुए, भारत ने जिस संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए हैं, उसमें यह दृष्टिकोण सामने रखा गया है कि अफगानिस्तान में मौजूदा स्थिति के लिए जिम्मेदार देशों को इस देश के आर्थिक पुनर्निर्माण के लिए अपने दायित्वों को पूरा करना चाहिए।
तालिबान की बात
शुक्रवार को सम्मेलन में भाग लेते हुए भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने आतंकी संगठनों की हरकतों पर लगाम लगाने के लिए कोशिशें तेज करने का आह्वान किया था। ऐसे समय में जब तालिबान ने महिलाओं और बच्चों पर कई तरह की पाबंदियां लगा रखी हैं, NSA ने उनके मूल अधिकारों का सम्मान करने के महत्व पर भी बल दिया। ईरानियों के अनुसार, अपने समकक्ष अली शमखानी के साथ द्विपक्षीय चर्चा में डोभाल ने अफगानिस्तान में बचे हुए या छोड़े गए अमेरिकी हथियारों के आतंकवादी संगठनों द्वारा इस्तेमाल करने की आशंका जाहिर की।म से भरोसा नहीं किया जा सकता है। यहां भी आतंक के खिलाफ बोलने की उसकी अपनी बड़ी वजह है।
चीन का मिजाज क्यों बदला
यहां आतंकवाद के खिलाफ चीन के बोलने की निजी वजह है। अगर वह अफगानिस्तान में आतंकवाद पर भारत के साथ चिंताएं जता रहा है तो उसके बीच पाकिस्तान नहीं बल्कि उसका अपना शिनजियांग है। जी हां, वह ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) की गतिविधियों पर अंकुश लगाना चाहता है। यह पश्चिमी चीन में बना उइगुर इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन है, जो चीन के लिए सिरदर्द बना हुआ है। हालांकि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे पाकिस्तान स्थित आतंकी समूहों की भारत विरोधी गतिविधियों के संदर्भ में क्षेत्र से आतंकी कैंपों को नष्ट करने की जरूरत पर जोर दिया जाना भारत के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। भारत सरकार पिछले साल नवंबर में आयोजित तीसरे क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद में बनी आम सहमति को भी संयुक्त बयान में शामिल कराने में सफल रही। इस चर्चा की मेजबानी दिल्ली में डोभाल ने की थी। हालांकि चीन ने उस सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया था। अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण के लिए बीजिंग ने भी Tunxi initiative को शामिल कराया है।
आतंकवाद पर संयुक्त बयान में कहा गया कि सभी पक्षों ने इस बात पर गौर किया है कि क्षेत्र के देशों के खिलाफ आतंकी गतिविधियों, टेरर फंडिंग, प्रशिक्षण, साजिश, पनाहगाह के लिए अफगानिस्तान का अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों द्वारा इस्तेमाल स्वीकार नहीं है। इसमें कहा गया कि प्रतिनिधिमंडलों के प्रमुखों ने अफगानिस्तान की सीमा से लगे देशों और अन्य इच्छुक देशों के बीच इन खतरनाक समूहों की गतिविधियों से संबंधित सूचनाओं को साझा करने में सहयोग बढ़ाने पर प्रतिबद्धता जताई है।
आमंत्रित किए जाने के बाद भी पाकिस्तान दिल्ली डायलॉग में शामिल नहीं हुआ था। इस बार फिर वह अनुपस्थित रहा। दरअसल, पाकिस्तान की नई सरकार ने अब तक नए एनएसए की नियुक्ति ही नहीं की है।