सुरेन्द्रनगर:जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य, मानवता के मसीहा, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण अंग्रेजी नववर्ष 2025 का बृहद् महामंगलपाठ का श्रवण करने के लिए गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में मानों पूरा राष्ट्र उमड़ पड़ा। पूर्व निर्धारित समयानुसार 11.21 बजे शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने महामंगलपाठ का उच्चारण प्रारम्भ किया तो समुपस्थित जनता अपने स्थान पर करबद्ध खड़ी थी तो आदिनाथ चैनल तथा यूट्यूब के तेरापंथ चैनल पर देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों से सीधा प्रसारण देखने वाले श्रद्धालु भी मानों इस सुअवसर का पूर्ण लाभ प्राप्त कर रहे थे। गूंजती आर्षवाणी से मानों पूरा वातावरण पावन बन रहा था और जन-जन का मन इस आध्यात्मिक माहौल में आध्यात्मिक शुभारम्भ का साक्षी बन रहा था। आचार्यश्री ने नववर्ष पर मंगलपाठ प्रदान करने के साथ ही जनता को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि वर्ष भर के लिए अपने मन से कोई आध्यात्मिक संकल्प लेने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने सुझाव देते हुए कहा कि पच्चीस बोल को इस वर्ष में पक्का कंठस्थ करने का संकल्प लिया जा सकता है। इसके अर्थ को समझने के लिए आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की पुस्तक जीव-अजीव को पढ़ने का प्रयास किया जा सकता है। दूसरा विकल्प है कि प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष के संदर्भ में प्रतिदिन तीन मिनट तक प्रेक्षाध्यान करने का संकल्प भी लिया जा सकता है। आचार्यश्री ने संकल्पों के अनुसार त्याग भी कराया। श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री के प्रति त्रिपदी वंदना की।
इसके पूर्व सूर्योदय के कुछ समय पश्चात शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सायला से गतिमान हुए तो काफी संख्या में श्रद्धालु अपने आराध्य के श्रीचरणों का अनुगमन करने लगे। गुजरात के इस सौराष्ट्र भाग में मानों आज पूरा भारत उमड़ आया था। गुजरात व उसके आसपास के श्रद्धालु ही नहीं, देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु इस नववर्ष का मंगलपाठ श्रवण करने हेतु पहुंचे हुए थे। लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री डोलिया में स्थित डोलिया जैन तीर्थ में पधारे।
मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री के पदार्पण से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने समुपस्थित जनमेदिनी को उद्बोधित किया। तदुपरान्त आचार्यश्री मंचासीन हुए और निर्धारित समय पर जनता को नववर्ष के संदर्भ में बृहद महामंगलपाठ प्रदान करते हुए नववर्ष पर पच्चीस बोल कंठस्थ करने, उसका अर्थ जानने, जीव-अजीव पुस्तक के स्वाध्याय के साथ प्रतिदिन कुछ समय प्रेक्षाध्यान का प्रयोग करने की भी प्रेरणा प्रदान की। तदुपरान्त युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को क्षण को जानने व उसका मूल्यांकन करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को समय का मूल्यांकन करने का प्रयास करना चाहिए। जो कभी भविष्य होता है, वह कभी वर्तमान हो जाता है और वर्तमान अतीत के गर्त में समाहित हो जाता है। सन् 2024 एक वर्ष तक वर्तमान में रहा और अब एक जनवरी 2025 वर्तमान है और 2024 अतीत के गर्त में जा चुका है। अनागत वर्तमान से होते हुए अतीत में चला जाता है। अतीत भी अनंत और अनागत भी अनंत है। वर्तमान बहुत थोड़ा होता है। जितना संभव हो सके, आदमी को उसका सदुपयोग करना चाहिए। समय एक ऐसा धन है, जो सभी को समान रूप से प्राप्त होता है। उस समय को आदमी अपने गले का हार बना ले। प्राप्त समय का सदुपयोग हो जाए तो वह गले का हार बन सकता है। योजनाबद्ध रूप में समय का उपयोग हो तो जीवन में कुछ उपलब्धि हो सकती है। सन् 2025 सम्यक् पुरुषार्थ से सफलतम बने, ऐसा प्रयास होना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने समुपस्थित जनता को कुछ समय तक प्रेक्षाध्यान का प्रयोग भी कराया। इस अवसर पर मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी, साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने भी जनता को उद्बोधित किया। जैन विश्व भारती द्वारा नववर्ष का कैलेण्डर पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित किया। खान्देश सभा के वर्ष 2025 के कैलेण्डर का लोकार्पण किया गया।