नई दिल्ली:आपसी सहमति से तलाक लेने के मसले पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए कम से कम छह महीने तक ‘कूलिंग ऑफ’ यानी अलग रहने की अवधि को माफ कर दिया है। कोर्ट ने दंपति के तलाक को मंजूरी देते हुए यह फैसला दिया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा की पीठ ने कहा कि दंपति को कानूनी बंधन में बांधने का अर्थ सिर्फ उनसे एक नया जीवन शुरू करने का अवसर छीनने के बराबर होगा। पीठ ने परिवार अदालत की ओर से पारित फैसले को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की है।
निचली अदालत ने दंपति की ओर से आपसी सहमति से तलाक के लिए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13बी(2) के तहत दाखिल अर्जी को खारिज कर दिया था। इसमें कहा गया था कि पहला प्रस्ताव पेश किए जाने की तारीख से छह महीने की वैधानिक अवधि और अलग होने की तारीख से 18 माह की अवधि समाप्त नहीं हुई है। उच्च न्यायालय ने परिवार अदालत के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि दोनों पक्ष (पति-पत्नी) अच्छी तरह से शिक्षित हैं और स्वतंत्र व्यक्ति हैं। उन्होंने आपसी सहमति से अपनी शादी के भाग्य का फैसला किया है। न्यायालय ने कहा कि वे (दंपति) एक ऐसी उम्र में हैं जहां अगर उन्हें मौका दिया जाए तो नया जीवन शुरू कर सकते हैं। पीठ ने कहा कि हालांकि उन्हें कानूनी बंधन से बांधकर रखने का मतलब केवल एक पूर्ण जीवन जीने का अवसर छीन लेना है।
विवाद के बाद अलग होने का निर्णय
आपसी सहमति से तलाक की मांग कर रहे दंपति की शादी 30 नवंबर 2016 को हुई थी। शादी के बाद हुए विवाद के बाद दोनों ने अलग होने और आपसी सहमति से तलाक लेने का फैसला लिया और अक्तूबर 2020 से दोनों अलग रहने लगे। दंपति ने पीठ को बताया था कि उनके परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों/शुभचिंतकों ने मतभेदों को दूर कर सुलह कराने के प्रयास किए लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली। इसके बाद दोनों ने सहमति से तलाक लेने के फैसला किया था।