सत्ता पाने के लिए बसपा ने बनाया नया प्लान लोकसभा चुनावों से पहले बदलेगा पार्टी का पूरा हुलिया! कभी उत्तर प्रदेश में एकछत्र राज करने वाली बहुजन समाज पार्टी (BSP) इस वक्त महज एक विधायक के साथ विधानसभा में अपनी पार्टी की नुमाइंदगी कर रही है। कभी लोकसभा सीटों के नाम पर जीरो पर पहुंचने वाली बहुजन समाज पार्टी इस वक्त अपने दस सांसदों के साथ लोकसभा में प्रतिनिधित्व तो कर रही है
, लेकिन आने वाले चुनावों में बहुजन समाज पार्टी अपने नीचे गए इस ग्राफ को ऊपर लाने की तैयारी में जुट गई है। यही वजह है कि बसपा सुप्रीमो मायावती और और पार्टी के कुछ चुनिंदा नेताओं ने पार्टी में पूरी तरीके से मेकओवर की कई बड़ी योजनाएं बना डाली हैं। पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि आने वाले लोकसभा चुनावों से पहले पार्टी का पूरा हुलिया बदला हुआ नजर आएगा।
जल्द होंगे पार्टी में बड़े फेरबदल
दरअसल बहुजन समाज पार्टी अपने खोए हुए जनाधार को पाने के लिए एक बार फिर से नई योजनाओं को बना रही है। नई योजनाओं में तमाम तरह के फेरबदल और पार्टी में निष्क्रिय हो चुके नेताओं को भी बदलने का बड़ा फरमान जारी हो चुका है। बहुजन समाज पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेता बताते हैं
कि पार्टी की नीतियों और बाबा साहेब के मिशन को नीचे तक पहुंचाने में बहुत से नेता नाकाम हो चुके हैं। वह कहते हैं कि इस बारे में बसपा सुप्रीमो मायावती को भी पूरी जानकारी है कि कौन नेता किस तरह से पार्टी में काम कर रहा है। उनके मुताबिक अगले कुछ दिनों में पार्टी के भीतर न सिर्फ बड़े फेरबदल होंगे, बल्कि बूथ स्तर तक पर पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया जाएगा।
इसके अलावा पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर और मायावती के भतीजे आकाश आनंद की ओर से पार्टी में युवाओं को ज्यादा से ज्यादा मौका देने की बात की है। पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेता कहते हैं कि ऐसा करके पार्टी न सिर्फ बड़े बदलाव करेगी, बल्कि उसके परिणाम भी आने वाले लोकसभा चुनावों में दिखेंगे। बहुजन समाज पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेता का कहना है
कि आकाश आनंद ने बसपा सुप्रीमो मायावती से पार्टी में ज्यादा से ज्यादा युवाओं की भागीदारी और उनको जिम्मेदारी देने की सिफारिश की है। पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि आने वाले लोकसभा के चुनाव मे बहुजन समाज पार्टी ज्यादा से ज्यादा युवाओं को मौका देकर चुनावी मैदान में उतारेगी।
बहुजन समाज पार्टी में लंबे समय से अलग-अलग पदों पर जिम्मेदारी निभाने वाले एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि पार्टी का ग्राफ 2012 से लगातार गिर रहा है। उनका कहना है पार्टी ने इस दौरान रणनीतिक तौर पर कई फेरबदल और कई प्रयोग भी किए। लेकिन ज्यादातर प्रयोग असफल ही साबित हुए।
वह कहते हैं कि ये प्रयोग गठबंधन के तौर पर भी थे और जातिगत समीकरणों के आधार पर भी इसे किया गया था। फिलहाल बहुजन समाज पार्टी ने आने वाले लोकसभा चुनावों से पहले इस बार व्यापक फेरबदल करते हुए युवाओं को तरजीह देने की योजना तो बना ही ली है।
गठबधंन कभी माकूल नहीं रहा बसपा को
मायावती ने लोकसभा चुनावों को लेकर स्पष्ट किया है वे किसी भी दल से समझौता भी नहीं करेंगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मायावती की इस घोषणा के पीछे कई वाजिब कारण भी हैं। उत्तर प्रदेश के सियासी जानकार जटाशंकर सिंह कहते हैं कि दरअसल मायावती ने जब-जब गठबंधन किया, तब-तब मायावती को फायदा कम हुआ, बल्कि जिसके साथ गठबंधन हुआ उसे ज्यादा फायदा हुआ।
सिंह कहते हैं कि यही वजह है कि मायावती ने इस बार बहुत सोच समझकर आने वाले चुनावों में गठबंधन से इनकार कर दिया है। वह कहते हैं कि मायावती के पहले गठबंधन से लेकर लोकसभा में हुए समाजवादी पार्टी के गठबंधन का इतिहास उठाकर देख लें, तो पता चल जाएगा कि इसमें मायावती को ही हमेशा नुकसान हुआ है।
यह बात अलग है कि 2019 समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन में बसपा शून्य से दस सांसदों की संख्या तक जरूर पहुंची थी। लेकिन पार्टी का मानना है कि समाजवादी पार्टी का वोट बहुजन समाज पार्टी के साथ ट्रांसफर नहीं हुआ था।
दलित चिंतक और बहुजन समाज पार्टी से जुड़े ब्रजकिशोर बताते हैं कि मायावती का वोटर सिर्फ मायावती में ही भरोसा करता है। बहुजन समाज पार्टी जब अपने राजनीतिक करियर के चरम पर थी, तो वह अकेले ही मैदान में संघर्ष भी कर रही थीं और अकेले ही उत्तर प्रदेश में राज भी कर रही थीं।
ब्रजकिशोर कहते हैं कि गठबंधन के साथ ही पार्टी का अपना जनाधार भी कम होने लगा और बसपा के वोटरों का भरोसा भी पार्टी से उठने उसने लगा। उनका मानना है कि बगैर गठबंधन के चुनाव लड़ने की बात मायावती अगर अपने वोटरों में मजबूती से समझा पाती हैं, तो आने वाले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के लिए यह बहुत कुछ नया और सकारात्मक मिलने जैसा भी हो सकता है।