जयपुर:पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से राजस्थान कांग्रेस में शुरू हुआ झगड़ा आगामी चुनाव से पहले चरम पर पहुंचता दिख रहा है। मंगलवार को एक बार फिर यह साफ हो गया कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच टकराव थमने वाला नहीं है और अगले कुछ महीनों में आर-पार की जंग देखने को मिल सकती है। 2018 विधानसभा में कांग्रेस की जीत के लिए खुद को क्रेडिट देकर सत्ता में अहम हिस्सेदारी मांगते आ रहे पायलट ने गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोले रखने का ऐलान किया है। भाजपा नेता वसुंधरा राजे के साथ गहलोत की मिलीभगत का आरोप लगाकर अपनी ही सरकार पर सवाल खड़े करने वाले पायलट को ना तो कोई सफलता मिली है और ना ही उन्हें ऐसी कोई उम्मीद नजर आ रही है। खुद उनके मुंह से भी निकल पड़ा- मैं नाउम्मीद हो गया हूं। भले ही उन्होंने यह बात वसुंधरा सरकार के खिलाफ लगे आरोपों की जांच की मांग को लेकर कही,लेकिन राजनीतिक जानकार इसे गहलोत के खिलाफ जंग में उनकी हताशा से जोड़कर देख रहे हैं।
पायलट ने एक तरफ याद दिलाया कि वसुंधरा सरकार में हुए भ्रष्टाचार को लेकर वादे के मुताबिक गहलोत ने कार्रवाई नहीं की तो दूसरी तरफ सोनिया गांधी के अपमान का भी आरोप जड़ा। उन्होंने कहा कि पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अजय माकन और मल्लिकार्जुन खरगे को जयपुर भेजा था, लेकिन विधायकों की बैठक नहीं होने दी गई। पायलट ने इसे सोनिया गांधी का अपमान और गद्दारी करार दिया। उन्होंने यह भी कहा कि गहलोत की नेता सोनिया गांधी नहीं, बल्कि वसुंधरा राजे हैं। पार्टी नेतृत्व से कई बार गहलोत पर कार्रवाई की मांग कर चुके पायलट हाल में अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठे। गहलोत पर ऐक्शन तो नहीं हुआ उलटे पायलट के अनशन को ही पार्टी विरोधी गतिविधि बताते हुए उन्हें आगे के लिए चेतावनी जारी की गई। ऐसे में अब उन्हें पार्टी नेतृत्व की ओर से गहलोत के खिलाफ किसी ऐक्शन की उम्मीद नहीं रह गई है। यही वजह है कि उन्होंने पूरी लड़ाई अपने हाथ ले ली है। अनशन के बाद अब 5 दिन की पदयात्रा का ऐलान भी कर दिया है।
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि उन्होंने वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया, कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा और 11 अप्रैल को दिनभर अनशन भी किया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। उन्होंने कहा, ”अब मुझे समझ में आ रहा है कि यह जांच अब तक क्यों नहीं हुई। मैंने इस मुद्दे को लेकर 11 अप्रैल को अनशन किया, लेकिन अब मैं नामउम्मीद हूं, क्योंकि तथ्य सामने आ रहे हैं कि कार्रवाई क्यों नहीं हुई और (आगे) क्यों नहीं होगी, यह बात भी अब स्पष्ट चुकी है।’
जिस वक्त सचिन पायलट गहलोत को घेरने में जुटे थे उसी वक्त मुख्यमंत्री पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ माउंट आबू में थे। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि गहलोत ने जिस तरह 25 सितंबर की घटना के बाद भी हालात को संभाला और पार्टी नेतृत्व से करीबी बढ़ा ली उसके बाद पायलट के लिए निराशा बढ़ गई है। पायलट को लगता है कि पार्टी नेतृत्व अगला चुनाव गहलोत की अगुआई में ही लड़ने जा रहा है और ऐसे में उन्होंने अपने सभी विकल्पों को आजमाना शुरू कर दिया है। इसी के तहत वह पार्टी को अपनी ताकत दिखाने के मकसद से पदयात्रा करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘भ्रष्टाचार एवं नौजवानों के हितों से जुड़े मुद्दों को लेकर मैं जनसंघर्ष पदयात्रा निकालने जा रहा हूं, जो 11 मई को अजमेर से शुरू होगी। हम जयपुर की तरफ आएंगे और यह यात्रा लगभग 125 किलोमीटर लंबी होगी। उनकी आवाज हम सुनेंगे और उनकी आवाज हम बुलंद भी करेंगे।’