डेस्क:कांग्रेस ने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के आंकड़ों का हवाला देते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा। यह आरोप लगाया कि भारत के विकास में मंदी है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रचार-प्रसार में लगे हुए हैं। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि जीडीपी वृद्धि के तिमाही आंकड़ों से पता चलता है कि निजी निवेश सुस्त बना हुआ है। मध्यम और दीर्घकालिक आर्थिक क्षमता तेजी से खत्म हो रही है। स्थिति का मूल कारण श्रमिकों की मजदूरी में वृद्धि नहीं होना है। उन्होंने कहा कि भारत के लोग ‘होप’ में जी रहे हैं जबकि प्रधानमंत्री सिर्फ ‘हाइप’ बनाने में लगे हैं। रमेश ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘जुलाई से सितंबर 2024 के लिए कल शाम जारी किए गए जीडीपी विकास के आंकड़े अनुमान से कहीं अधिक खराब हैं। भारत में 5.4 प्रतिशत की मामूली वृद्धि दर्ज की गई है और खपत में वृद्धि भी महज 6 प्रतिशत है।’
जयराम रमेश ने दावा किया कि प्रधानमंत्री और उनके चीयरलीडर्स जानबूझकर इस मंदी के कारणों को नजरअंदाज कर रहे हैं। एक अग्रणी वित्तीय सूचना सेवा कंपनी इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च की ‘लेबल डायनामिक्स ऑफ इंडियन स्टेट्स’ नामक नई रिपोर्ट इसके वास्तविक कारण का खुलासा करती है, जो कि स्थिर मजदूरी है। रमेश ने कहा, ‘रिपोर्ट में यह दिखाने के लिए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण डेटा का इस्तेमाल किया गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर समग्र वास्तविक वेतन (प्रत्येक राज्य में महंगाई के लिए समायोजित करके) वृद्धि पिछले पांच वर्षों में 0.01 प्रतिशत पर स्थिर रही है।’
‘वास्तविक मजदूरी में गिरावट देखी गई’
कांग्रेस नेता ने कहा, ‘हरियाणा, असम और उत्तर प्रदेश के श्रमिकों की तो इसी अवधि में वास्तविक मजदूरी में गिरावट देखी गई है। यह कोई अपवाद नहीं है। लगभग हर साक्ष्य और तथ्य इसी विनाशकारी निष्कर्ष की ओर इशारा कर रहे हैं कि औसत भारतीय आज 10 साल पहले की तुलना में कम खरीदारी कर पा रहा है, उनकी क्रय शक्ति घट गई है। यह भारत के विकास में मंदी का अंतिम मूल कारण है।’ उनके अनुसार, श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी 2014-2023 के बीच स्थिर रही है। वर्ष 2019-2024 के बीच वास्तव में इसमें गिरावट ही आई है।
‘निजी निवेश सुस्त बना हुआ’
जयराम रमेश ने कहा कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल में खेतिहर मजदूरों की वास्तविक मजदूरी हर साल 6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ी, जबकि प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में कृषि मजदूरों की वास्तविक मजदूरी में हर साल 1.3 प्रतिशत की गिरावट आई। उन्होंने कहा, ‘इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि जीडीपी वृद्धि के तिमाही आंकड़ों से पता चलता है कि निजी निवेश सुस्त बना हुआ है। हमारी मध्यम और दीर्घकालिक आर्थिक क्षमता तेजी से खत्म हो रही है। इसका मूल कारण करोड़ों श्रमिकों की स्थिर मजदूरी है।’ रमेश ने सवाल किया कि इस गंभीर हकीकत को कब तक नजरअंदाज किया जाता रहेगा?