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Home आराधना-साधना

मोक्ष की प्राप्ति हो जीवन का लक्ष्य : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

शांतिदूत का वाव प्रवास का तृतीय दिवस 

ON THE DOT TEAM by ON THE DOT TEAM
April 16, 2025
in आराधना-साधना
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आचार्यश्री
मोक्ष की प्राप्ति हो जीवन का लक्ष्य : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
मोक्ष की प्राप्ति हो जीवन का लक्ष्य : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
वाव-थराद:शास्त्र में बताया गया है कि हम सभी मनुष्य हैं। मानव जीवन प्राप्त है और उसे जी रहे हैं। विचारणीय यह है कि आदमी किसी लक्ष्य के साथ जीवन जी रहा है अथवा बिना लक्ष्य के इतने महत्त्वपूर्ण जीवन को जी रहा है। इस दुर्लभ मानव जीवन के लिए आदमी को कोई अच्छा लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और उसके अनुरूप जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। प्रश्न हो सकता है कि इस जीवन का अच्छा लक्ष्य क्या हो सकता है? समाधान प्रदान करते हुए कहा कि पूर्व कर्मों का क्षय करने के लिए आदमी को इस देह को धारण करना चाहिए। सारे पूर्वकर्म कट जाएंगे तो आदमी को मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। इसलिए मानव जीवन का सबसे बढ़िया लक्ष्य यह हो सकता है कि कर्मों का क्षय करने के लिए वह जीवन जीने का प्रयास करे, क्योंकि मानव जीवन में अध्यात्म की जो उत्कृष्ट साधना की जा सकती है, वह अन्य किसी प्राणी के जीवन में वह उत्कृष्ट साधना नहीं हो सकती। मनुष्य केवल ज्ञानी बन सकता है, अन्य कोई प्राणी केवलज्ञानी नहीं बन सकते।
छठे गुणस्थान से लेकर चौदह गुणस्थान केवल मनुष्य को ही प्राप्त कर सकता है, अन्य किसी भी प्राणी के लिए यह संभव नहीं होता। आदमी इस प्रकार यह सबसे बड़ा लक्ष्य बना ले तो आदमी उसके अनुरूप आगे बढ़ सकता है। यदि आदमी भौतिक विषयों में उलझ गया तो उसे लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकती। मोक्ष के अनुरूप जीवनशैली बनाकर जीवन जीने का प्रयास होना चाहिए। उसके लिए आदमी को धार्मिक-आध्यात्मिक जीवन जीने का प्रयास करना होगा। अहिंसा, संयम और तप की आराधना के द्वारा मानव मोक्ष की दिशा में गतिमान हो सकता है।
जीवन जीना है तो शरीर को भी टिकाना होता है। शरीर को टिकाए रखने के लिए इसे भोजन, पानी, हवा आदि देना पड़ेगा। यह शरीर की मांग है, यदि इन मांगों को न पूर्ण किया जाए तो शरीर बिना प्राण के हो सकता है। इसलिए शरीर की मांग को पूरा करते रहेंगे तो शरीर अच्छा चलेगा और शरीर से धर्म की साधना, आराधना, तप आदि हो सकता है। शरीर को एक कर्मचारी मान लें तो उसकी मांग को पूरा करना भी अतिआवश्यक है। शरीर को श्वास को चाहिए। यह शरीर की सबसे अतिआवश्यक मांग है। इसी प्रकार शरीर को आहार की आवश्यकता है। भोजन करना, कैसे करना और कितना करना, इसका विचार भी आवश्यक है। आदमी को भोजन में संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। भोजन का संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। उनोदरी करना बहुत अच्छी बात होती है। आहार के प्रति जागरूकता रखने का प्रयास करना चाहिए। इस शरीर को स्वस्थ रखते हुए आदमी मोक्ष की साधना भी कर सकता है। उक्त पावन पाथेय युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को ‘वर्धमान समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालु जनता को प्रदान की।
वाव प्रवास का तीसरे दिन आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने भी वाववासियों को उद्बोधित किया। मुमुक्षु कल्प व श्री श्रीकेशभाई ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ किशोर मण्डल व तेरापंथ कन्या मण्डल-वाव ने अपनी प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने किशोरों व कन्याओं को पावन प्रेरणा प्रदान की। श्री विशाल परिख ने अपने परिवार के साथ आचार्यश्री से मंगलपाठ का श्रवण कर संस्था में प्रवेश किया। परिख परिवार की ओर से श्री समकित परिख ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। वाव संघ के प्रमुख श्री भीखाभाई, पूर्व सरपंच व राजपूत समाज की ओर से श्री हरीसिंह भाई, श्री जैन श्वेताम्बर वाव-पथक तेरापंथ सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री राजेश मेहता, श्री चंपकभाई मेहता ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। शिवांगी सुरेश मेहता ने दो पद्य गीत का संगान किया। मेहता परिवार की ओर से ‘वाव नी संघ समर्पण गाथा’ गीत का संगान को प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने मेहता परिवार को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। श्री राजेश शर्मा ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी।

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