हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। हर महीने के शुक्ल व कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस बार प्रदोष व्रत 11 जुलाई, सोमवार को है। सोमवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोष व्रत के नाम से जानते हैं। सोमवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने के कारण इस दिन का महत्व और बढ़ रहा है। यह दिन व व्रत दोनों ही भगवान शंकर को समर्पित माने गए हैं। मान्यता है कि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की विधिवत पूजा व व्रत रखने से मनोकामना पूरी होती है। जानें शुभ मुहूर्त, महत्व व पूजा विधि-
प्रदोष व्रत के दिन बन रहे शुभ संयोग-
सोम प्रदोष व्रत की शुरुआत ब्रह्म योग व सर्वार्थ सिद्धि योग से होगी। इसके अलावा सूर्योदय से लेकर रात 9 बजे तक शुक्ल योग का भी संयोग बन रहा है। इसके अलावा सुबह 5 बजकर 15 मिनट से 5 बजकर 32 मिनट तक रवि योग का योग बना है।
सोम प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त-
शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी 11 जुलाई को सुबह 11 बजकर 14 मिनट से शुरू होगी, जो कि 12 जुलाई को सुबह 07 बजकर 46 मिनट पर समाप्त होगी। शिव पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 07 बजकर 22 मिनट से पात 09 बजकर 24 मिनट तक रहेगा।
प्रदोष व्रत पूजा विधि-
प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल में की जाता है। सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक का समय प्रदोष काल माना जाता है।
प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव का अभिषेक करें व बेलपत्र भी अर्पित करें।
इसके बाद भगवान शिव के मंत्रों का जप करें।
जप के बाद प्रदोष व्रत कथा सुनें।
अंत में आरती करें और पूरे परिवार में प्रसाद बांटे।
सोम प्रदोष व्रत कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई सहारा नहीं था इसलिए वह सुबह होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। वह खुद का और अपने पुत्र का पेट पालती थी।
एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा।
एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार पसंद आ गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। वैसा ही किया गया।
ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करने के साथ ही भगवान शंकर की पूजा-पाठ किया करती थी। प्रदोष व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के साथ फिर से सुखपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। मान्यता है कि जैसे ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के प्रभाव से दिन बदले, वैसे ही भगवान शंकर अपने भक्तों के दिन फेरते हैं।