प्राचीन मान्यताओं के अनुसार देव शयनी एकादशी के पश्चात चातुर्मास आरंभ होता है। चातुर्मास वर्षा के चार महीनों को माना जाता है। कहा जाता है कि इस अवधि में भगवान विष्णु शेषशय्या पर विश्राम करते हैं और कार्तिक शुक्ला एकादशी (देवोत्थान एकादशी) को जागृत होते हैं। इस बीच में कोई भी शुभ कार्य करना निषेद्य माना गया। शास्त्रीय वचन भी यही कहते हैं। चातुर्मास में विवाह एवं गृह प्रवेश आदि शुभ मुहूर्त नहीं होते और ना ही करनी चाहिए। किंतु अब देश, काल एवं परिस्थिति के अनुसार कुछ मान्यताएं समाप्त होती जा रही हैं। इस वर्ष चातुर्मास में अर्थात जुलाई-अगस्त सितंबर माह में गृह प्रवेश के 13 मुहूर्त है जो शुभ माने गए हैं। इसमें जुलाई में 24 और 25, अगस्त में 3, 4, 5, 7 ,12, 21, 24, 25 और सितंबर में 3,7,8 तिथि शामिल हैं। इनके अलावा सर्वार्थ सिद्धि योग, प्रवर्धन योग एवं आनंद योग आदि का विचार करके भी मुहूर्त करने में कोई दोष नहीं है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी में यदि सप्तसकार योग बनता है तो बहुत ही उत्तम योग होता है। सप्त सरकार योग में सात ’स’ का होना बहुत आवश्यक है जो इस तरह से हैं। श्रावण मास, शुक्ल पक्ष, सप्तमी तिथि, सोमवार या शुक्रवार,स्वाति नक्षत्र, शुभ योग, स्थिर लग्न। यह सप्तसकार योग नींव पूजन, गृह प्रवेश एवं वैवाहिक कार्यों के लिए बहुत उत्तम माना गया है।
पंचांग में दो प्रकार के विवाह मुहूर्तों का वर्णन है। एक सर्वदेशीय जो सब जगह लागू होते हैं और दूसरे वैवाहिक मुहुर्त द्विगर्त अर्थात जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश,नेपाल एवं उत्तराखंड एवं पंजाब सम्भाग में मान्य हैं। आज पंजाबी समाज, कश्मीरी समाज और नेपाल और उत्तराखंड का समाज पूरे भारतवर्ष में फैला हुआ है। इसलिए जो मुहूर्त पंजाब अथवा कश्मीर उत्तराखंड क्षेत्र के लिए शुभ हो सकते हैं वे अन्य समाज के लिए भी शुभ हो सकते हैं। पंचांगों में वर्णित चातुर्मास में वैवाहिक मुहुर्त में जुलाई में 18, 19,20, 21,23, 24, 25, 30,31 जुलाई, अगस्त में 1,2,3,4,5, 8, 10, 11, 14, 20, 21, 29, 30, 31 अगस्त और 1,4,5,7,8 सितंबर शामिल हैं। इन तीनों महीनों में 28 विवाह मुहूर्त हैं। देशकाल और परिस्थितियों का विचार करके विवाह एवं गृह प्रवेश पर विचार किया जा सकता है। 10 सितंबर से श्राद्ध पक्ष आरंभ हो जाएगा। उसमें वैवाहिक कार्य अथवा गृह प्रवेश कार्य निषेद्य होता है। नवरात्रों के पश्चात शरद पूर्णिमा को बसंत पंचमी या अक्षय तृतीया के समान अबूझ मुहूर्त माना गया है।
(ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)