हाल ही में दो प्रमुख घटनाओं ने भारतीय समाज और राजनीति में धर्म, स्वतंत्रता, और समानता के मुद्दों को फिर से उजागर किया है। अफगानिस्तान में महिलाओं के खिलाफ बने नए कानून और भारत में मुस्लिम संगठनों द्वारा न्यू ईयर मनाने पर जारी किया गया फतवा, दोनों ने एक गंभीर सवाल खड़ा किया है: क्या हम धार्मिक स्वतंत्रता की सीमाएं पार कर रहे हैं, और क्या भारत को अफगानिस्तान जैसे राष्ट्र में बदलने का खतरा है, जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता का कोई अस्तित्व नहीं है?
अफगानिस्तान में महिलाओं के खिलाफ नया कानून:
अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ने हाल ही में एक नया कानून लागू किया है, जिसमें नए घरों में खिड़कियों की अनुमति नहीं दी गई है ताकि महिलाएं बाहर की दुनिया को देख न सकें। यह कानून महिलाओं को समाज से अलग-थलग करने के एक और प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। तालिबान सरकार के प्रवक्ता ने यह तर्क दिया कि महिलाओं की झलक से अश्लील हरकतें हो सकती हैं और इसीलिए उन्हें घर की चारदीवारी के भीतर ही रखा जाना चाहिए। इसके अलावा, तालिबान की अन्य नीतियां, जैसे महिलाओं के पार्कों में जाने पर रोक और शिक्षा पर प्रतिबंध, इसे एक असहनीय और दमनकारी शासन बनाती हैं।
भारत में धार्मिक दखलअंदाजी:
भारत में हाल ही में ऑल इंडिया मुस्लिम जमात ने न्यू ईयर मनाने पर फतवा जारी किया है, जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों से इस पर्व को मनाने से बचने की अपील की गई है। फतवे में कहा गया है कि न्यू ईयर का जश्न मनाना, जो “अंग्रेजी वर्ष” की शुरुआत के रूप में देखा जाता है, मुसलमानों के लिए निषेध है। यह धार्मिक उग्रवाद और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सीमाओं को लेकर चिंताओं को जन्म देता है, खासकर तब जब यह विचारधारा पूरे समाज पर प्रभाव डालने की कोशिश करती है।
इसके अलावा, मुस्लिम संगठनों ने सलमान रुश्दी की किताब द सैटेनिक वर्सेज की बिक्री पर भी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और भारत सरकार से इस पर प्रतिबंध बनाए रखने का आग्रह किया है। यह घटनाएँ दर्शाती हैं कि कुछ धार्मिक समूह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकारों पर गंभीर रूप से हमला कर रहे हैं।
क्या भारत अफगानिस्तान की ओर बढ़ रहा है?
इन घटनाओं के बीच, भारत की धार्मिक और सामाजिक ताने-बाने में एक असहज रुझान उभर रहा है। अफगानिस्तान में जो घटनाएँ घटित हो रही हैं, वे भारत में भी किसी हद तक देखने को मिल रही हैं। हालाँकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां धार्मिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी की गारंटी संविधान में दी गई है, लेकिन विभिन्न धार्मिक संगठनों और समूहों की बढ़ती शक्ति और उनके द्वारा समाज पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिशें चिंता का विषय बन सकती हैं।
अगर इस तरह के कदम और धार्मिक दबाव बढ़ते रहे, तो कहीं न कहीं यह भारत को अफगानिस्तान की ओर ले जा सकते हैं, जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता को दबाने के लिए कठोर कानून और फतवे जारी किए जाते हैं। यह चिंताजनक है, क्योंकि भारत का संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान करता है, और हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी धार्मिक या सांस्कृतिक दबाव इन अधिकारों का उल्लंघन न कर सके।
हमारा दायित्व:
हमारा दायित्व है कि हम इन धार्मिक और सामाजिक दबावों का विरोध करे और सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार और स्वतंत्रता की रक्षा करें। हमें यह याद रखना होगा कि एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र में प्रत्येक नागरिक को अपनी पसंद और विश्वास के अनुसार जीने का अधिकार होना चाहिए। भारत को किसी भी देश के जैसी सख्त धार्मिक सीमाओं से बचना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यहां हर किसी को स्वतंत्रता, सम्मान और समानता का अधिकार मिले।
अगर भारत में ऐसी घटनाओं और नीतियों का सिलसिला जारी रहा, तो यह हमारे संविधान की आत्मा पर हमला हो सकता है। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि धार्मिक विविधता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता भारत की ताकत है, और इसको सुरक्षित रखना हम सभी का कर्तव्य है। अफगानिस्तान जैसे दमनकारी विचारों से बचने के लिए हमें धर्मनिरपेक्षता और समावेशी समाज की रक्षा करनी होगी, ताकि हमारे देश में हर नागरिक को अपनी पसंद और विश्वास के अनुसार जीने का अधिकार मिल सके।