छापर, चूरू (राजस्थान) : विक्रम संवत् 2005 में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के नवमे अनुशास्ता गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी ने अपने गुरु कालूगणी जन्भूमि पर चतुर्मास किया। उस चतुर्मास के उपरान्त लगभग 74 चतुर्मास देश-विदेश की धराओं पर हुए। लगभग 74 चतुर्मास के उपरान्त इस धरा पर का भाग्य जगा और तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान विक्रम संवत् 2079 में परम पूज्य कालूगणी की जन्मधरा पर अध्यात्म की गंगा प्रवाहित करने के लिए पधारे हैं। साढ़े सात दशक बाद इस सौभाग्य को प्राप्त कर छापरवासी आस्था और आनंद से गदगद नजर आ रहे हैं।
रविवार को प्रातः प्रवचन पंडाल से युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने श्रीमुख से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में त्राण और शरण की बात आती है। व्यवहार नय में आदमी किसी को त्राण और शरण देता है, किन्तु निश्चय नय की बात करें इस संसार में कोई भी किसी को त्राण ओर शरण नहीं बन सकता। शास्त्र में अपनी आत्मा को त्राण और शरण बताया गया है। कोई व्यक्ति अंतिम त्राण नहीं हो सकता। मान लिया जाए किसी को किसी प्रकार की व्याधि हो गई। उसके पास बहुत धन भी है और परिजन भी हैं। डॉक्टर दवा दे रहा है, चिकित्सा हो रही है, सेवा भी की जा रही है, किन्तु उसकी वेदना को कम नहीं किया जा सकता। इस मामले में व्यक्ति अत्राण ही होता है। कोई किसी को मृत्यु से नहीं बचा सकता। कहा गया है कि कोई छह खण्ड का राजा भी हो तो उसे मृत्यु से नहीं नहीं बचाया जा सकता। परम पूज्य कालूगणी को व्याधि हुई और धर्मसंघ उन्हें बचा नहीं पाया। इसलिए धर्म और अध्यात्म में रमी आत्मा ही त्राण और शरण बन सकती है और धर्म-अध्यात्म की साधना के द्वारा मोक्ष को प्राप्त कर सकती है।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि हम अष्टमाचार्य कालूगणी की इस जन्मधरा पर चतुर्मास करने की दृष्टि से आए हैं। आचार्य मघवागणी से दीक्षित हुए। वे तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य बने। उन्होंने अपने आचार्यकाल में धर्मोद्योत करने का प्रयास किया। इतने साधु-साध्वियों को उन्होंने दीक्षित किया। वर्तमान में तो उनके काल के दीक्षित साधु-साध्वियों में कोई नहीं रहा। उन्होंने संस्कृत भाषा का बहुत विकास किया। उनकी जन्मभूमि पर आयोजित यह चतुर्मास धर्माराधना, ज्ञानाराधना और चारित्राराधना से युक्त हो। छापर का चतुर्मास अध्यात्म की दृष्टि से अच्छा हो।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्याजी ने भी उपस्थित श्रद्धालुओं को उत्प्रेरित किया। छापर सेवाकेन्द्र में वर्तमान में सेवा देने वाली मुनि पृथ्वीराजजी ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति देते हुए गीत का संगान किया। लाडनूं में सेवा दे रहे मुनि विजयकुमारजी ने भी गीत का संगान किया। संसारपक्ष में छापर से संबद्ध साध्वी प्रज्ञाप्रभाजी, साध्वी मंजुलप्रभाजी व साध्वी संघप्रभाजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। साध्वी मंजुलप्रभाजी की सहवर्ती साध्वियों के साथ गीत का संगान किया। छापर चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री नरेन्द्र कुमार नाहटा, स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल की अध्यक्ष श्रीमती सरिता सुराणा, मंत्री श्रीमती अल्का बैद, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री सौरभ भूतोड़िया, श्रीमती सुमन बैद व बालक दिव्यांश सिंघी ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी श्रद्धासिक्त अभिव्यक्ति दी। भिक्षु पुरुषाई मण्डल व छाजेड़ परिवार की सदस्याओं ने गीत का संगान किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति के माध्यम से अपने आराध्य की अभिवंदना की।