थांदला: जैन दर्शन में संयम को मोक्ष पाने का राज मार्ग कहा गया है हालांकि इस राज मार्ग पर चलने की हिम्मत कुछ विरली ही आत्मा कर पाती है । ऐसी ही एक मुमुक्षु आत्मा रतलाम निवासी श्रेयांश चौरड़िया के सत्कार बहुमान का शुभ अवसर थांदला श्रीसंघ को प्राप्त हुआ । थांदला संघ ने सामूहिक नवकारसी के बाद श्रेयांश भैया की जय जयकार करते हुए जयकार यात्रा निकाली जो नगर के प्रमुख मार्गों से होती हुई स्थानीय पौषध भवन पर विराजित साध्वी मंडल के सानिध्य में संयम अनुमोदना सभा में परिवर्तित हो गई ।
दीक्षार्थी भाई के संयम अनुमोदना में उपस्थित धर्मात्माओं को सम्बोधित करते हुए पूज्या श्री निखिलशीलाजी म.सा. ने कहा कि भव्य वातावरण में हाथी घोड़ों के साथ धूम धाम से दुल्हें राजा कि बारात निकल रही थी तभी दुल्हें के कानों में मरण भय से पीड़ित मूक पशुओं का आक्रन्दन सुनाई दिया उनका विवेक जागृत हुआ कि संसार की शुरुआत आश्रव से हो रही है तो आगे क्या होगा …? बस वही से उन्होंनें सभी प्राणियों को अभयदान देते हुए छःकाय प्रतिपाल बनने का निर्णय ले लिया । अनुपम साधना मार्ग को अपना कर वासुदेव श्रीकृष्ण के चचेरे भाई वे हमारे 22वें तीर्थंकर परम आराध्य भगवान अरिष्ट नेमिनाथ बन गए और धर्म की प्रभावना करते हुए यही मार्ग सबको बताया । श्रेयांस भैया को भी परिवार ऐसे ही बंधन में बांधनें के प्रयास कर रहे थे किंतु जिनके मन में दृढ़ वैराग्य भाव होते है वे बंधन से निकल जाते है । जैनाचार्य पूज्य श्री उमेश मुनिजी की प्रार्थना अब जय हो अपनी अपनी भी का आलम्बन लेते हुए पूज्याश्री ने कहा कि अपने को जो व्यवहार प्रिय लगे वैसा ही व्यवहार हमें सबसे करना चाहिए । जीवन में जब भी वैराग्य भाव आये उसे पुष्ट करते रहे तो एक दिन हम भी ऐसी ही भव्यता को प्राप्त कर सकते है व फिर अपनी भी जय जयकार होने लगती है । पूज्या श्री प्रियशीलाजी म.सा. ने कहा कि आध्यात्म सार में वैराग्य भाव आने के तीन कारण बताए है जो मिथ्यात्व आदि 5 कारण रूप भव भ्रमण के जंतुओं से अरुचि, विषयों से अरुचि व संसार की असारता का ज्ञान है । संसार की तुलना शमशान से करते हुए पूज्याश्री ने कहा कि श्मशान कि तरह संसार में तृष्णा का गड्ढा कभी भरता नही, यहाँ ही शोक रूपी अग्नि जलती ही रहती है फिर अपयश की राख भी आपकी कितनी भी अच्छाई हो उड़ती ही रहती है ऐसे में ज्ञानी जनों ने वैराग्य भाव को प्राप्त कर मोक्ष के सुख को शाश्वत बतलाया है । इस अवसर पर पूज्याश्री दीप्तिजी म.सा. ने मंगल स्तवन के माध्यम से संयम की अनुमोदना की । धर्म सभा में श्रीसंघ अध्यक्ष भरत भंसाली ने सकल संघ कि ओर से दीक्षार्थी भाई श्रेयांश को उनके आगामी संयम जीवन की खूब खूब अनुमोदना कर मंगल कामना व्यक्त की । थांदला संघ कि ओर से संघ के पूर्वाध्य नगीनलाल शाहजी, रमेशचन्द्र चौधरी, प्रकाशचंद्र घोड़ावत, महेश व्होरा, जितेंद्र घोड़ावत, भरत भंसाली, कोषाध्यक्ष संतोष चपड़ौद, ललित जैन नवयुवक मंडल अध्यक्ष रवि लोढ़ा, चर्चिल गंग, संदीप शाहजी व धर्मलता महिला मंडल कि ओर से अध्यक्ष श्रीमती पुष्पा घोड़ावत, गरिमा श्रीश्रीमाल, किरण श्रीश्रीमाल, मूर्ति पूजक संघ कि ओर से कमल पीचा, तेरापंथ सभा से अरविंद रुनवाल आदि सहित अन्य संस्थाओं ने मुमुक्षु को शाल माला व अभिनन्दन पत्र व गुरुदेव का साहित्य भेंट कर बहुमान किया । सभा का संचालन संघ सचिव प्रदीप गादिया ने व प्रवक्ता पवन नाहर ने आभार माना ।
दीक्षार्थी भाई श्रेयांश ने संयम अनुमोदना में उनके बहुमान के लिए सभी का धन्यवाद करते हुए कहा कि धर्म नगरी थांदला में अनेक महा पुरूषों ने दीक्षा ली है व आगे भी लेंगें ऐसे में उनके आगे कुछ कहने की आवश्यकता नही है । फिर भी कई लोग मुझसे पूछते है कि आपको वैराग्य कैसे आया तो मुझे समझ नही आया कि इसका क्या जवाब दू क्योंकि वैराग्य तो आत्मा का स्वभाव ही है । एक रूपक प्रस्तुत करते हुए मुमुक्षु भाई ने कहा कि यदि आपको पता चले कि आपके रास्तें में आगे चोर है जो आपको मारपीट कर आपके पास की सभी धन सामग्री चुरा लेंगे जिससे बचने के लिए सब पहले ही रख दो तो आगे वह सुरक्षित मिल जाएगी तो आप क्या करेंगें । यह धन – वैभव – परिवार सब छूटने ही वाला है इसलिए इसका स्वेच्छा से त्याग बाद के दुःख से बचने का सरल उपाय है फिर भगवान की वाणी पर भरोसा ही वैराग्य भाव को दृढ़ बनाता है । श्रेयांश ने कहा कि आप सभी इसी मार्ग पर चले व मुझे भी 28 अप्रैल को रतलाम में जिन शासन गौरव पूज्य श्री उमेश मुनिजी “अणु” के अंतेवासी शिष्य बुद्ध पुत्र पूज्य श्री जिनेन्द्र मुनि जी व अन्य संत सतियो के सानिध्य में मेरी दीक्षा में आकर मेरे आत्म लक्ष्य प्राप्ति का मंगल आशीर्वाद प्रदान करें ।
श्रेयांश ने संयम अनुमोदना के लिए दिया धन्यवाद !