सूरत:श्रमण परम्परा के उज्ज्वल नक्षत्र, जैन धर्म के प्रभावक आचार्य, संत शिरोमणि युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी धवल सेना के साथ गुजरात राज्य में अविरल गतिमान है। सूरत जिले को पावन बना गुरुदेव की यात्रा अब भरूच जिले में नैतिकता की अलख जगा रही है। आगामी 6 दिसंबर को अंकलेश्वर व 7 दिसंबर को भरूच में गुरुदेव का प्रवास निर्धारित है। जनकल्याण करते हुए विचरणरत आचार्यश्री आज रायमा ग्राम से विहार कर हांसोट गांव में पधारे। जहां योगी विद्या मंदिर विद्यालय में गुरुदेव का प्रवास हुआ।
मंगल प्रवचन में धर्मोपदेश देते हुए शांतिदूत से कहा कि यह मनुष्य जन्म दुर्लभ है व कितने कितने जन्मों के बाद यह उपलब्ध होता है। दुर्लभ होने के बाद भी जब उपलब्ध हो तो हमें इसका भरपूर लाभ उठाने का प्रयत्न करना चाहिए। हमारे मन में प्राणी मात्र के प्रति दया व अनुकम्पा का भाव होना चाहिए। किसी के प्रति दुर्भावना व अनावश्यक हिंसा नहीं होना चाहिए। सबके प्रति मैत्री की भावना रहे व हमारे कारण से किसी को कष्ट न हो। मनुष्य जन्म को सार्थक करने का एक उपाय है सुपात्र दान। शुद्ध साधु को दिया गया शुद्ध दान कभी निष्फल नहीं जाता। दान के भी कई प्रकार होते है। शुद्ध साधु को दिया जाने वाला दान धर्म का कारण बनता है तो वहीं किसी दुखी, गरीब दिए गए दान से दयालुता में वृद्धि होती है।
गुरूदेव के एक कहानी के माध्यम से प्रेरणा देते हुए कहा कि संसार में मित्र को दान देने से मैत्री बढती है, दुश्मन को दान देने से शत्रुता कम हो सकती है। दान देने व सहयोग करने वाले का दूसरा भी सहयोग करता है। सहयोग के बदले सहयोग की भावना भी व्यक्ति के भीतर जाग जाती है। व्यक्ति सबके प्रति विनय व प्रमोद का भाव रखने का प्रयास रखे।
कार्यक्रम में योगी विद्या मंदिर के अध्यक्ष हरीश भाई पटेल ने गुरुदेव के स्वागत में अपने विचार रखे।