4 जून, 2024। इस तारीख को जब लोकसभा चुनाव का नतीजा आया तो भाजपा जीतकर भी परेशान थी कि आखिर 240 सीटों पर ही काफिला क्यों रुक गया, जबकि दावे 400 के थे और कुछ महीने पहले स्थिति अनुकूल भी लग रही थी। वहीं कांग्रेस 99 सीट लाकर हैरान थी और इसे अपने लिए उसने एक खिताब की तरह देखा। लंबे समय बाद ऐसा हुआ कि विपक्ष की सीटें करीब 230 तक चली गईं और मोदी सरकार को नीतीश और नायडू की मदद से सत्ता हासिल करनी पड़ी। यह विपक्ष के लिए उत्साह वाली बात थी और लगातार राहुल गांधी दोहरा भी रहे थे कि हमने नरेंद्र मोदी के आत्मविश्वास को हिला दिया है। भाजपा समर्थक तो इसे झटके के तौर पर ही ले रहे थे, लेकिन कुछ महीने बाद स्थिति फिर से पलट गई है।
पहले हरियाणा के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सत्ता फिर से पा ली, जबकि कहा जा रहा था कि किसान आंदोलन की इस जमीन पर कांग्रेस मजबूत है। वहीं जम्मू-कश्मीर में INDI अलायंस जीता तो कांग्रेस कमजोर रह गई। कश्मीर में जीरो रही और जम्मू में भी बेहद कमजोर रह गई। फिर महाराष्ट्र के नतीजों ने कांग्रेस और पूरे विपक्ष को ही करारा झटका दिया। भाजपा के लीडरशिप वाले महायुति को सत्ता वापस मिल गई है और देवेंद्र फडणवीस सीएम बन गए हैं। लेकिन इसके साथ ही INDI अलायंस में महाभारत भी शुरू हो गई है। एक तरफ कांग्रेस ने ईवीएम पर सवाल उठाए हैं तो वहीं उमर अब्दुल्ला, ममता बनर्जी और सुप्रिया सुले ने इसे खारिज किया है। इन नेताओं का कहना है कि बिना किसी ठोस सबूत के ईवीएम पर ठीकरा फोड़ना ठीक नहीं है।
कांग्रेस तो बिफर ही गई और उमर अब्दुल्ला से यहां तक पूछ लिया कि आखिर मुख्यमंत्री बनने के बाद आपकी भाषा क्यों बदल गई है। यही नहीं अखिलेश यादव ने भी कांग्रेस को दबाव में रखने की कोशिश की है। दिल्ली में वह आम आदमी पार्टी के चुनावी मंच पर तो गए हैं, लेकिन कांग्रेस से दूरी बनाकर रखी है। आखिर यूपी में लोकसभा चुनाव कांग्रेस के साथ लड़ने के बाद भी अखिलेश दिल्ली में AAP को इतना भाव क्यों दे रहे हैं। इसके पीछे कांग्रेस को दबाव में लाने की रणनीति मानी जा रही है। दरअसल INDI अलायंस में दरार की एक वजह यह भी है कि ममता बनर्जी ने पिछले दिनों कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए थे। टीएमसी का कहना था कि ममता बनर्जी को INDI अलायंस का नेतृत्व मिल जाना चाहिए।
इस पर शरद पवार ने भी कह दिया कि ममता बनर्जी नेतृत्व की क्षमता रखती हैं। यही नहीं लालू यादव ने भी ऐसा ही जवाब दिया। साफ था कि लालू यादव बिहार में सीट बंटवारे से पहले ऐसा बोल रहे थे ताकि कांग्रेस को प्रेशर में रखा जा सके। यह तो चुनावी राजनीति की खींचतान है, लेकिन यह भी सही है कि 4 जून के बाद से अब तक गठबंधन की कोई मीटिंग नहीं है। चुनाव से पहले मुंबई, बेंगलुरु और पटना आदि में बैठकें हुई थीं, लेकिन अब किसी भी नेता का समन्वय पर जोर नहीं है। ऐसे में अगले लोकसभा चुनाव तक गठबंधन की तस्वीर क्या होगी। इस बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है।