डेस्क:देश के कुछ इलाकों की आबादी के अनुपात में इतना बदलाव हो गया है कि वहां चुनाव बेमानी हो गए हैं। ऐसे इलाकों में पहले से पता होता है कि चुनाव का परिणाम क्या आएगा। उन्होंने जयपुर में चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की एक कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि देश के कई इलाके राजनीतिक किलेबंदी में तब्दील हो गए हैं। इन इलाकों में चुनाव और लोकतंत्र के मायने ही नहीं रह जाते हैं, जहां पहले से तय होता है कि नतीजा क्या आएगा। उन्होंने कहा कि जनसंख्या के अनुपात में तेजी से बदलाव होना दुनिया के कई हिस्सों में चिंता का विषय बन गया है।
उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘यदि इस तेजी से बढ़ती हुई चुनौती से सही तरीके से नहीं निपटा गया तो फिर यह हमारे अस्तित्व के लिए भी चैलेंज होगा। ऐसा दुनिया में हुआ है। मुझे उन देशों का नाम लेने की जरूरत नहीं है, जिन्होंने अपनी पहचान खो दी क्योंकि वहां आबादी के संतुलन में बड़ा बदलाव आ गया। 100 फीसदी तक चेंज आया। यह आबादी के भूकंप जैसा था। आबादी का ऐसा असंतुलन किसी परमाणु बम से कम असर नहीं करता है।’ जगदीप धनखड़ ने किसी देश का नाम नहीं लिया, लेकिन कहा कि कई विकसित देश भी जनसंख्या के अनुपात में तेजी से आए बदलाव का सामना कर रहे हैं।
जगदीप धनखड़ ने अपनी बात को और विस्तार देते हुए कहा, ‘आप हमारी संस्कृति देखिए। हमारा समावेशी विचार, विधिधता में एकता सभी के लिए हितकारी है और सभी को आगे बढ़ाने वाली है। हम सभी बाहें फैलाकर स्वागत करते हैं, लेकिन क्या हो रहा है? इसका फायदा गलत तरीके से उठाया जा रहा है। आबादी के अनुपात में बदलाव हो रहा है। फिर विभाजनकारी बातें हो रही हैं और इसके लिए जाति की बात भी की जाती है।’ उन्होंने किसी भी इलाके का नाम नहीं लिया। लेकिन कहा कि जनसंख्या के अनुपात में बदलाव के चलते कई इलाकों में चुनाव ही बेमानी से हो गए हैं।
बदली आबादी से कई इलाके बन गए राजनीतिक किले
ऐसे इलाके राजनीतिक किलेबंदी के तौर पर इस्तेमाल होते हैं। हमने देश में यह बदलाव देखा है कि कई इलाके राजनीतिक किले बन गए हैं। वहां लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं रह गया है। चुनाव का भी कोई अर्थ नहीं है। पहले से पता होता है कि यहां किसे चुना जाएगा। ऐसा इलाके हमारे देश में हैं और ये तेजी से बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे संकट से निपटने के लिए हमें जाति, नस्ल, रंग, संस्कृति और आस्था के भेद से ऊपर उठना होगा। सभी को एकसाथ प्रयास करने होंगे। उन्होंने कहा कि हम बहुसंख्यक समाज के तौर पर बहुत सहिष्णु हैं। यह तभी रह सकती है, जब आबादी का संतुलन न बिगड़े।