नई दिल्ली : रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच फ्रांस में राष्ट्रपति की चुनाव प्रक्रिया पूरी होने की ओर बढ़ रही है। मौजूदा राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के हाथ से यदि सत्ता निकलती है तो इससे रूस के खिलाफ यूरोप और अमेरिका की मोर्चाबंदी को बड़ा झटका लग सकता है। ऐसे हालात में अभी दूसरे नंबर पर चल रही दक्षिणपंथी उम्मीदवार मारीना ली पेन राष्ट्रपति बन जाएंगी। वे पहले ही साफ कर चुकी हैं कि यदि राष्ट्रपति बनी तो फ्रांस नाटो की एकीकृत सैन्य कमान से अलग हो जाएगा।
उन्होंने विदेश नीति में बड़े बदलाव के संकेत देते हुए यह भी कहा है कि वह यूरोप और रूस के संबंधों में मजबूती पर जोर देंगी ताकि रूस को चीन के नजदीकी बनने से रोका जा सके। उनके अनुसार यह यूरोप के ही नहीं बल्कि अमेरिका के भी हित में होगा। इसलिए सभी देशों की नजर फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव पर टिकी हुई है।
राष्ट्रपति चुनाव के दूसरे दौर में मैक्रों के साथ ली पेन पहुंच चुकी है। हालांकि अभी तक मैक्रों को चार फीसदी ज्यादा मत मिले हैं इसलिए उनके जीतने की संभावनाएं ज्यादा हैं। लेकिन ली तीसरी बार यह चुनाव लड़ रही हैं, इसलिए अगले दौर में क्या होगा कहना मुश्किल है। 24 अप्रैल को चुनाव का नतीजा आएगा।
ली पेन को रूस के राष्ट्रपति पुतिन का समर्थक माना जाता है। सोशल मीडिया पर पुतिन के साथ उनकी कई तस्वीरें भी वायरल हुई हैं। उन्होंने रूस के एक बैंक से बड़ा कर्ज भी हासिल किया है। लेकिन ली पेन की जिन बातों ने यूरोप और अमेरिका को चिंता में डाला है, वह हैं, उनके नाटो से अलग होने की चेतावनी। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि वह सत्ता में आती हैं तो न नाटो की सैन्य कमान से फ्रांस को अलग करेंगी। वह न तो नाटो में अपने सैनिक भेजेंगी और न ही यूरोप द्वारा भविष्य में बनाई जाने वाली किसी कमान में शामिल होंगी। उन्होंने रूस से बेहतर संबंध बनाने पर भी जोर दिया है।
दरअसल, रूस से बेहतर संबंधों को लेकर जो तर्क पेन ने दिया है, उससे मिलती-जुलती बात मैक्रों भी कहते रहे हैं। वैसे, भी यूरोप में एक ऐसी सोच भी है कि चीन के वर्चस्व को बढ़ने से रोकने के लिए यूरोप को रूस से बेहतर संबंध बनाने चाहिए। सही मायने में अमेरिका का दूरगामी हित भी इसी बात में है कि वह रूस को चीन का दोस्त नहीं बनने दे। लेकिन अभी स्थितियां एकदम उलट चल रही हैं। पेन के ऐलान ने इस बहस को नई दिशा दे दी है।
रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टनेंट जनरल राजेन्द्र सिंह ने कहा कि यदि पेन राष्ट्रपति बनती हैं तो वह निश्चित रूप से अपने वादे पर अमल करेंगी। क्योंकि फ्रांस पहले भी 1966 में एक बार नाटो से अलग हो चुका है। यदि ऐसा होता है तो यह नाटो के लिए बड़ा झटका होगा। इससे रूस के खिलाफ यूरोप की एकजुटता बिखर जाएगी। फ्रांस यूरोप का न सिर्फ एक बड़ा ताकतवर देश है बल्कि एकमात्र परमाणु ताकत संपन्न देश भी है।