चंडीगढ़:पंजाब के विधानसभा चुनावों में महज 18 सीटें जीतकर सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस में जल्दी ही बदलावों का दौर शुरू होने वाला है। सीएम रहे चरणजीत सिंह चन्नी दोनों सीटों से हार गए थे, जबकि अपने बयानों से चर्चित रहने वाले नवजोत सिंह सिद्धू को खुद अमृतसर पूर्व सीट से हार का सामना करना पड़ा था। नतीजों के बाद सोनिया गांधी ने प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू से इस्तीफा मांग लिया था। सिद्धू ने एक लाइन में यह लिखकर इस्तीफा दिया था कि जैसे सोनिया गांधी चाहती हैं, मैं इस्तीफा दे रहा हूं। माना जा रहा है कि कांग्रेस अब चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच टकराव के अध्याय का ही पटाक्षेप करना चाहेगी, जिसका खामियाजा हार के तौर पर झेलना पड़ा था।
भले ही राज्य में विधानसभा चुनाव अब 5 साल बाद होंगे, लेकिन कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए परेशान है। सूबे की 13 सीटों पर जीत हासिल करने के लिए पेच कसे जा रहे हैं और नवजोत सिंह सिद्धू के विकल्प की तलाश चल रही है। फिलहाल पंजाब के नए प्रदेश अध्यक्ष के लिए स्टेट कमिटी की ओर से भेजे गए नामों में सांसद रवनीत बिट्टू और चौधरी संतोख सिंह शामिल हैं। वहीं गिद्दड़बाहा से विधायक अमरिंदर राजा वड़िंग और सुखजिंदर रंधावा भी इस दौड़ में हैं। हालांकि नवजोत सिद्धू दूसरी बार प्रधान पद पद मांग रहे हैं। यहां तक कि पिछले दिनों उन्होंने कांग्रेस के करीब 2 दर्जन नेताओं से मीटिंग कर शक्ति प्रदर्शन की कोशिश की थी। पंजाब की राजनीति में वापस लौटे विधायक प्रताप सिंह बाजवा भी इशारों में दावेदारी ठोक चुके हैं।
पंजाब में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी टेंशन गुटबाजी को थामने की है। चरणजीत सिंह चन्नी, सिद्धू और बाजवा मिलकर तीन कोण बनाते हैं। इसके अलावा मनीष तिवारी भी अकसर अलग ही सुर में रहते हैं। ऐसे में पार्टी की चिंता यह है कि किसी ऐसे नेता को कमान दी जाए, जिसकी छत्रछाया में पूरी पार्टी एकजुटता से काम करे। कांग्रेस की कोशिश है कि दो साल बाद लोकसभा चुनाव में इसका नुकसान न हो, इसलिए कांग्रेस सांसदों पर फोकस कर रही है।
नवजोत सिद्धू की साख भले ही अपनी ही सीट हारने से कमजोर हुई है, लेकिन तेवर बरकरार हैं। कहा जा रहा है कि वह एक बार फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनने की मांग हाईकमान से कर रहे हैं। सिद्धू ने हाल ही में पंजाब के 24 नेताओं से मीटिंग की थी। इसमें चुनाव हारे उम्मीदवारों के साथ विधायक सुखपाल खैरा और बलविंदर धालीवाल भी शामिल हुए। सिद्धू खेमे का तर्क है कि चरणजीत चन्नी को सीएम चेहरा बनाते वक्त ही राहुल गांधी को स्पष्ट कर दिया गया था कि हार या जीत के जिम्मेदार सिद्धू नहीं होंगे। इसलिए अब उन्हें पद से हटाना ठीक नहीं होगा।